Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 843
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७९४ प्रश्नव्याकरणसूत्रे पवित्रहहकारीत्यर्थः, तथा- सिद्धिविमाणगुयदारं ' सिद्धिविमानापावृतद्वारम्-सिद्धेः-मोक्षगतेः, विमानोनाम् अत्तरविमानानाम् च, अगतम्-उद्घाटितं द्वारं प्रवेशमुखं येन तत्तथा, स्वर्गापवर्गद्वारोद्घाटकमित्यर्थः ॥ २॥ पुनः कीदृशं ब्रह्मचर्यम् ? इत्याह-' देवनरिंद ' इत्यादि । 'देवनरिंदनमंसिय पुज्ज' देवनरेन्द्रनमस्यितपूज्यम्-देवाः भवनपत्यादयः, नरेन्द्राः चक्रवादयस्तैः नमस्थिताः= नमस्कृता ये महापुरुषास्तेषां पूज्यम् आदरणीयम् । तथा- सबजगुत्तममंगलमगं'.सर्वजगदुत्तममंगलमार्गः सर्वजगत्यु-त्रिषु लोकेषु उत्तमो मङ्गलश्च यो मार्गः उपायः, सोऽस्ति । तथा- दुरिस' दुर्द्धर्यम् - देवदानवैरप्यपरिभवनीयम् , 'गुणनायगं' गुणनायक-गुणान-ज्ञानादिरूपान नयति प्रापयति यत्तत्तादृशम्-गुणधायमित्यर्थः, तथा-' एक्कं ' एकं प्रधानम्-निरुपमम् इत्यर्थः, तथा ' मोक्खपहस्स' मोक्षपथस्य मोक्षमार्गस्य ' वडिंसगभूयं ' अवतंसकभूतम्-शिरोभूषणसदृशमिदं ब्रह्मचर्यमस्ति ॥ ३ ॥ इसका ही प्रभाव सय को पवित्र और मारभूत बना देता हैं। अर्थात् यह व्रत समस्त व्रतों को पवित्र और दृढ़ करने वाला है । (सिद्धिविमाणअवंगुयदारं ) तथा मोक्षगति का और अनुत्तर विमानों का द्वार इससे खुल जाता है, अर्थात् स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष) के द्वारका यह उद्धाटक है-खोलनेवाला है ॥२॥ (देवनरिंदनमंसियपुज्ज ) भवनपति आदि देवों द्वारा चक्रवर्ती आदि नरेन्द्रों द्वारा, नमस्कृत हुए ऐसे महापुरुषों के यह पूजनीय-आदरणीय है। तथा-(सव्यजगुत्तममंगलमग्गं) यह तीनों लोकों में उत्तम और मंगलकारी मार्ग है। तथा (दुरिसं) देव और दानवोंसे भी यह पराजित होने वाला नहीं है (गुणनायगं)ज्ञानादि सद्गुणों को यह प्राप्त कराने वाला है। (एक्कं ) यह प्रधाननिरुपम है (मोक्खपहस्स वडिंसगभूयं) और मोक्षमार्गका यह शिरोभूषणरूप है॥३॥ છે એટલે સ્વર્ગ અને અપવર્ગનાં દ્વારનું તે ઉદ્ધાટન કરનાર છે-ઉઘાડનાર છે મારા " देवनरिंदन सियपुज्ज'' मनपति मावि माने यवती मा िनरेन्द्रो पy જેમને નમન કરે છે એવા મહાપુરુષોને તે પૂજનીય અને આદરણીય છે. તથા " सव्वं जगुत्तममंगलमग्गं " ते नाणे सोभा उत्तम अने मारी भाग छ, तथा “ दुरिसं" । मने दानव द्वारा पा५ ते पति थाय मे नथी. " गुणनायणं " ज्ञानादि सदगुणीने ते प्रात ४२१ना२ छे. “ एक्कं " ते प्रधान -श्रेष्ट-मनुपन छ. “ मोक्खपहस्स वडिंसगभूयं " भने मोक्षमाग न त शिश. ભૂષણ રૂપ છે ! ૩ છે For Private And Personal Use Only

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