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प्रश्नब्याकरणसूत्रे इत्यर्थः, तथा 'खते ' क्षान्तः क्षमावान् ' दंते य' दान्तश्च इन्द्रियदमनकारी च, तथा-'हियनिरए ' हितनिरतः-आत्मकल्याणपरायण इत्यर्थः, तथा-' इरियासमिए' ईसिमितः, 'भासासमिए ' भाषासमितः 'एसणासमिए । एषणासमितः ' आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए ' आदानभाण्डामत्रनिक्षेपणासमितः 'उच्चारपासवणखेल जल्लसिंघाणपरिद्वावणियासमिए' 'उच्चारपासवणखेल सिंघागसमिए' उच्चारप्रस्रवण लेष्मसियाणजल्लपरिष्ठापनिकासमितः, 'मणगुत्ते। मनोगुप्तः- वयगुत्ते' वचोगुप्तः, 'कायगुत्ते' कायगुप्तः ' गुत्तिदिए ' गुप्तेन्द्रियः, ' गुप्तवंभयारी ' गुप्तब्रह्मचारी, एषामाः पूर्व व्याख्याताः । तथा वह तत्पर हो जाता है अर्थात् बाह्य और आभ्यन्तर तपों की आराधना वह बहुत अच्छी तरह से किया करता है। (खते) सय जीवों पर वह क्षमाभाव रखता हुआ (दंते) और अपनी इन्द्रियों का दमन करता हुआ (हियनिरए ) आत्मकल्याण करने में परायण बन जाता है। तथा ( इरियासमिए ) ईयोसमिति से युक्त (भासोसमिए ) भाषासमिति से युक्त, (एसणासमिए ) एषणासमिति से युक्त (आयाणभंडमत्तनिवखेवगासमिए) आदान भांडपत्रनिक्षेरणा समिति से युक्त तथा (उच्चार पासवणखेलसिंघाणजल्लपरिट्ठावणियासमिए) उच्चारप्रस्रवणखेलसिंघाणजल्लपरिष्ठापनिका समिति से युक्त (मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते ) मनोगुप्ति, वचनगुप्ति कायगुप्ति इन तीन गुप्तियों से गुप्त-रक्षित आत्मप्रवृत्ति वाला बना हुआ (गुतिदिए ) अपनी इन्द्रियों पर पूर्ण अंकुश रखने वाला बन जाता है (गुत्त बंभयारी ) ब्रह्मचर्यव्रत की नौ कोटि से सदा रक्षा करने वाला होता है । तथा फिर કે બાહ્ય અને અત્યંતર તપની આરાધના તે બહુ સારી રીતે કર્યા કરે છે. " खंते" ६२४ ७ ५२ ते समानमा रामतो “ दंते” भने पोतानी धन्द्रियार्नु मन ४२तो " हियविरए" यात्मक्याथु ४२वामा ५सया मनी onय छे. तथा “ इरियासमिए" ध्र्या समितिथी युक्त “भासासमिए " भाषासमितिथी युत, “ एसणासमिए " मेष समितिथी युत, “ आयाण-भंड. मत्तनिक्खेवणासमिए " माहान मांड भत्र निAण समितिथी युत तथा पुच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपरिद्रावणियासमिए " या२ प्रसमेत सि परिठापनि समितिथी यु४त मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते" भनाशुसि વચન-ગુપ્તિ અને કાયમુહિ, એ ત્રણે ગુણિએથી ગુરક્ષિત આત્મ પ્રવૃત્તિ पाणी मनाने “ गुत्तिदिए " पोतानी न्द्रियो५२ पूर्ण अंश २१मनार मना गय . " गुत्तब भयारी” प्राय बतनी न अटी. सहा २क्षा ४२ना२
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