Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदर्शिनी टीकाम०५ सू०८ चक्षुरिन्द्रियसंवर' नामक द्वितीयभावनानिरूपणम् ० सेले य दंतकम्मे य, पंचहिं वण्णेहिं अणेगसंठाणसंठियाई गंथिमवेढिमपूरिमसंघाइमणि य मलाई बहुविहाणि य नयणमणसुकराई वणसंडे पव्वए य गामागरनगराणि य खुड्डियपुक्खरिणी वावीदीहिय - गुंजालिय सरसरपंतिय सागरबिलपंतिय खाइय- नई - सर - तलाग - वष्पिणो फुल्लुप्पलपउमपरिमंडियाभिरामे, अणेगसउणगणमिहुणवियरिए, वरमंडवविविहभवण - तोरण - चेइय - देवकुल- सभप्पवावसह - सुकयसयणासण--सीयरह-सगडजाणजुग्गय-संदणे नरनारिंगणे य सोमपडिरूवदरिसणिज्जे, अलंकिय विभूसिय, पुव्वकय तवप्पभावसोहग्गसंपत्ते, नड - नट्टग - जल-मल - मुट्टिय-चेलंबगकहग-पवग-लासग - आइक्खग लेख मंख तूणइल तुंबवीणिय-तालायर पकरणाणि य बहूणि सुकरणाणि अण्णेसु य
एवमाइएसु रूवेसु मणुन्नभद्दएसुन तेसु समणेण सज्जियव्वं, न रजियव्वं, जाव न सई च मई च तत्थ कुजा, पुणरवि
--
खुइदिएणं पासिय रुवाई अमणुन्नपावगाई, किं ते ? गंडिकोढि - कुणि - उदरि--कच्छुल---पइल - कुज-- पंगुल -- वामण-अंधिलग - एगचक्खु विणिहय सप्पिसल्लगवाहिरोगपीलियं विगयाणि य मयककलेवराणि सकिमिणकुहियं च दव्वरासिं अन्नेसु य एवमाइएस अमणन्नपावगेसु न तेसु समणेण रूसियव्वं, जाव न दुर्गुछावत्तियावि लब्भा उप्पाएउं, एवं चक्खुइदियभावणाभाविओ भवइ अंतरप्पा मणुष्णामणुष्ण
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002