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सुदर्शिनी टीका म० ५ सू०५ संयताधारपालकस्य स्थितिनिरूपणम् ८७ सचित्ताचित्तमिश्रकेषु 'दव्वेहि' द्रव्येषु · विरागयंगए ' विरागतां गतः=मृाराहित्यं प्राप्तः, 'संचयओ' सञ्चयतः-संवयकरणात् 'विरए' :विरतः 'मुत्ते' मुक्ता बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहरहितः, 'लहुए' लघुकः-गौरवत्रयत्यागात् , 'निरवकंखे' निरवकाङ्क्षा आकाक्षा वर्जितत्वात् , 'जीवियमरणासविप्पमुत्ते' जीवितमरणाशाविप्रमुक्तः जीविताशामरणाशाभ्यां रहितः, 'धीरे धीरः बुद्धिमान् , ' निस्संध' सन्धिरहितं चारित्रपरिणामव्यवच्छेदाभावात् , 'निव्वणं' निव्रण निरतिचारम् 'चरितं ' चारित्रं-संयमं ' कायेण' कायेन-कायव्यापारेण न तु मनोरथमात्रेण 'फासयंते ' स्पृशन् , तथा-' सययं ' सततम् ' अज्झप्पज्झागजुत्ते' अध्यात्मध्यानयुक्तः 'निहुए ' निभृतः उपशान्तः 'एगे' एका रागादिसहायवर्जितः 'धम्म' धर्म-श्रुतचारित्ररक्षण ' चरेज्ज' चरेत् अनुपालयेत् ।।सू०५।। साधु (सचित्ताचित्तमीसएहिं दवहिं विरागयंगए) सचित्त, अचित्त
और मिश्र द्रव्यों में मूछ रहितपने को प्राप्त होकर (संचयओ विरए) संचय करने से विरक्त हो जाता है और (मुत्ते) बाह्य और आभ्यंतर परिग्रह से रहित हो जाता है । इस तरह (लहुए गौरव त्रय के त्याग से लघु बना हुआ श्रमण (निरवकंखे) आकांक्षा से वर्जित होने के कारण (जीवियमरणासविपत्ते ) जीवन की आशा और मरण की भयसे रहित हो जाता है । इस प्रकार (धीरे) इन समस्त पूर्वोक्त विशेषणों से विशिष्ट बना हुआ तत्त्वज्ञ श्रमण (निस्संधं) चारित्रपरिणाम की संधि-व्यवच्छेद के अभाव से (निव्वणं ) निरतिवार (चरित्तं ) चारित्रसंयम को ( काएण) काय के व्यापार से, नहीं की मनोरथ मात्र से (फासयंते) धारण कर ( अन्झप्पज्झाण जुत्ते ) अध्यास्मध्यान में लवलीन बनता हुआ (निहुए) उपशान्त भाव से संपन्न तत्व मेवो ते साधु “ सचित्ताचित्तमीसएहिं व्वेहिं विरागय गए ' सथित्त, भयित्त मने भि द्रव्योमा ममत्व २डितताने प्रारीने " संचयओ विरए" सघड ४२पाथी वि२४त थ य छ भने " मुत्त " हमने मास्यन्तर परियडथी २हित नय छे. सरीत "लहुए" गौरवत्रयना त्यागथी स५ बनेर श्रम निरवकखे" 24xiक्षाथी २डित पाने १२णे "जीवियमरणा सविप्पमुत्ते" पननी माशा मने भनी माथी २डित लय छे. म॥ शते “ धीरे" ते सपा विशेषथी युत गने तत्वज्ञ श्रम " निस्संध" यारित्र परिणामनी सधि-व्यवछेने मला " निव्वण" निरतियार "चरित्त" यारित्र-सयभने 'कारण " ४ायना व्यापारथी-भना२५थी । नडी-" फासयते" भा२६१ अरीने “अझप्पज्झाणजुत्ते" मध्यात्मध्यान सीन मनीन “निहुए"
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