Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 939
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८९० प्रश्नव्याकरणसूत्रे सम्पति पञ्च भावना अभिधातुकामः प्रथमां भावनामाइ- पंचमं ' इत्यादि मूलम्-पढमं सोइंदिएण सोच्चा सदाइं मणुण्णभदगाई, किंते, वरमुरयमुइंगपणवदद्दरकच्छभीवीण-विपंचिवल्लईबद्धी सक-सुघोस-णंदि-सूअर-परिवादिणि वंसतूणग-पव्वय तंती. तलताल-तुडिय-निग्घोस-गीयवाइयाइं णडणगजल्लमल्लमद्विगवेलबंग-कहगपबगलासग-आइकखग--लंख- मंख--तुणइल्ल तुंबर्वाणिय-तालायर-पकरणाणि य बहूणि महुरसगीयसुस्सराई कंची मेहलाकलावगपतरक-पतरेकपाय -- जालकघंटिय खिंखिणि रयणोरुजालय छुदियनेउरचलणमालियकणगनिग' डजालकभूसणसदाणि लीलचंकम्ममाणाणुदीरियाई तरुणीजणहसिय भणिय कलरिभियमंजुलाई गुणवयणाणि य वहणि महुरजणभासियाइं अण्णेसु य एवमाइएसु सदेसु भणुण्णभद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रजियव्वं न गिज्झियवं न मुज्झियव्वं न विनिघायं आवजियव्वं न लुभियत्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सइं च मइं च तत्थ कुज्जा । पुणरवि य सोइंदिएण सोच्चा सदाइं अमणुण्णपावगाइं किंते, अकोसफरूसखिसण अवमाणण तज्जणनिब्भच्छणं दित्तवयण तासण उक्कूजिय रुण्णरडियकंदिय विग्युटरसियकलुणविलवियाई अण्णेसु य एवमाइएसु सदेसु अमणुण्णपावएसु. न तेसु समणेणं रुसियत्वं न हीलियव्वं न निंदियव्वं, न खिसियव्वं, न छिंदियव्यं न भिदियव्वं, न वहेयवं, न दु गुंछावत्तियाविलब्भा उप्पाएउं। एवं साइंदियभावणाभाविओ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002