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सुदर्शिनी टीका २०५ सू०५ संयताबारपाकलस्य स्थितिनिरूपणम्
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निष्कम्पः - दिव्याशुपसर्गसंसर्गेऽपि धर्मध्यानादौ निश्चल इत्यर्थः, जहा खुरो ' यथा क्षुरः =र इव ' एगधारे चेव ' एकधारचैव यथा क्षुरएकधारस्तथैव साधुरुत्सर्गरूपैकधारो भवति, वर्द्धमान परिणामधारकइत्यर्थः, जहा अही' यथाऽहिः = अहिरिवसर्प इव ' एगदिट्ठी चे ' एकदृष्टिक्षेत्र = मोक्षे बद्धलक्ष्य इत्यर्थः तथा - ' आगासं चैत्र निरालंबे ' आकाशमिव निरालम्ब: । यथाऽकाशआलम्बनवर्जितस्तथैव श्रमitsपि ग्रामदेशकुलाद्यालम्बनरहित इत्यर्थः, तथा - विr fe' fare व पक्षी इव ' सव्वओ ' सर्वतः ' विमुक्के विमुक्तः निष्परिग्रह इत्यर्थः, तथा - ' उरए निष्पकपे) शून्य घर और शून्य आपण-दुकान के भीतर निर्वात (वायुरहित) प्रदेश में रखे हुए दीपक की प्रज्वलित लौं जैसे निष्प्रकंप होती है उसी प्रकार साधु भी देवादिकृत उपसर्गों के आने पर भी धर्मध्यान आदि में निष्प्रकंप निश्चल बना रहता हैं । (जहाखुरो चेव एगधारे) जैसे क्षुरा ऊस्तरा एक धार वाला होता है उसी प्रकार साधु भी उत्सर्गरूप एक धार वाडा होता है। अर्थात् साधु के परिणाम प्रकृष्ट विशुद्धि को लिये बढते ही रहते हैं, वे प्रतिपाती परिणामों वाले नहीं होते हैं । ( जहा अही चेव एगदिट्ठीं ) सर्प जिस प्रकार एक दृष्टिवाला होता है उसी प्रकार साधु भी अपने लक्ष्यरूप एक मोक्ष में निबद्ध दृष्टिवाला होता है। (आगासं चे व निरालंबे ) आकाशकी तरह वह आलंबन - सहारा से रहित होता है अर्थात् साधु को ग्राम देश, कुल आदी का आलंबन नहीं होता है। वह इन सब ग्रामादि से सर्वथा रहित ही होता है । ( बिहगे विव सन्चओ विष्पमुक्के) विहग - पक्षी की तरह वह सर्वतः विप्रमुक्त होता है परिग्रह से वर्जित होता
व ज्झामणमिव निष्पकंपे " माझी घर मने मासी हुअननी अंडर वायुनी असर રહિત સ્થાનમાં રાખેલ દીવાની સળગતી વાળા જેમ નિષ્પ્રક*પ ( સ્થિર ) હાય છે તેમ સાધુ પણ દેવાકૃિત ઉપસી નડતાં છતાં પણ ધર્માંધ્યાન આદિમાં सयस रहे छे." जहा खुरो चेव एगधारे " प्रेम क्षुरा-अस्त्रो मे धारवाणी હોય છે તેમ સાધુ પણ ઉત્સરૂપી એક ધારવાળા હોય છે એટલે કે સાધુની મનવૃત્તિ પ્રકૃષ્ટ વિશુદ્ધિઓને માટે વધતી જ રહે છે, તે પ્રતિપાતિ પરિણાभोवाणी होतो नथी. " जहा अहीचेत्र एगदिट्ठी " प्रेम साथ मेड दृष्टिवाणी હાય છે તેમ સાધુ પણ પોતાના લક્ષ્યરૂપ એક મેાક્ષમાંજ લીન દૃષ્ટિવાળા હાય छे. " आगासं चैव निरालंबे " सअशनी प्रेम ते निशवा भी होय छे भेटते કે સાધુને ગામ, દેશ, કુળ આદિનું અવલંબન હેતુ નથી. તે ગ્રામા િસમસ્ત भवदा जनोथी रहित होय छे. "विहगे विव सव्वओ विप्यमुक्के " विडપક્ષીની જેમ તે સર્વ પ્રકારે મુકત હાય છે-પરિગ્રહ રહિત હૈાય છે, ડ
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