Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 909
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६० प्रश्नव्याकरणसूत्रे वा' बहिर्वा उपाश्रयाद् बहिर्वा 'समणट्टयाए ' श्रमणार्थतया = श्रमणनिमित्तमित्यर्थः, 'ठवियं ' स्थापितं 'होज्ज' भवेत् , " हिसा सावजसंपउत्तं हिंसासावद्यसंप्रयुक्तम्-हिंसया पट्कायोपमर्दनेन सावधेन=सदोषेण कर्मणा च संप्रयुक्तं 'तंपि य तदपि च अशनादिकं परिघेत्तुं' परिग्रहीतुं 'न कप्पई न कल्पते।।सू०३॥ कीदृशमशनादि कल्पते ? इत्याह-' अहकेरिसयं ' इत्यादि। मूलम्-अह केरिसयं पुणो तं कप्पइ ? जं तं एगारसपि. डवायसुद्धं किण्णणहणण-पयण-कयकारियाणुमोयण--नवकोडीहिं सुपरिसुद्धं दसहि य दोसेहिं विप्पमुकं उग्गम उप्पायणेसणाहिं सुद्धं ववगयचुयचवियचत्तदेहं च फासुयं च ववगयसंजोगमणिगालं विगयधूमं छटाणनिमित्तं छक्काय परिरक्खण, हणि हणि फासुएण भिक्खेण वट्टियध्वं । जंपि य समणस्स सुविहियस्स रोगायके बहुप्पगारम्मि समुपन्ने वायाहिग -- पित्तसिंभाइरित्तकुवियतहसंणिवाए जाए तह उदयप्पत्ते उज्जलवल विउलकक्खड पगाढदुक्खे असुभकडुय फरुसचंडफलविवागमहन्मए जीवियंतकरणे सव्वसरीर परितावणकरणे न कप्पइ । तारिसे वि तह अप्पणो परस्स ( उस्सवेसु ) इन्द्रोत्सवों के समय में तथा ( अंतो वा बहिं वा) उपाश्रय के भीतर अथवा उपायश्रय से बाहिर ( होज्जसमणट्टयाए ठवियं) मु. नियों के निमित्त स्थापित कर रखा हो ऐसा वह (हिंसासावजसंपउत्तं ) पटूकायोपमर्दनरूप हिंसा से एवं सदोष कर्म से संप्रयुक्त अशनादि (न कप्पइ तंपिय परिघेत्तु) वह भी आहार साधु को लेना नहीं कल्पता है सू३॥ liyorles यज्ञोना समय भने “ उस्सवेसु " -द्रोत्सवाने सभये तथा "अंतो या बहिंवा " यायनी म४२ अथवा पाश्रयानी. १७२ " होज्ज समणद्वयाए ठवियं " भुनियाने भाटे भी भूतो डायमेव ते " हिंसासाबज्जसंपउत्तं " ७४य ७५मन३५ डिसायी तथा सो५ मथी युत ना " न कप्पइ तं पिय परिघेत्तुं " ते माडा२ ५७] साधुने खे॥ ४६५तो नथी । सू. 3 ॥ For Private And Personal Use Only

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