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सुदर्शिनी टीका अ०५ सू०४ कल्पनीयमशनादिनिरूपणम्
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दिषोडशविधा, एषणा = दशविधा, एषामितरेतरयोगद्वन्द्व : ताभिः, ' सुद्धं ' शुद्धम्, तथा - 'ववगयचुयचवियचत्त देहं च ' व्यपगतच्युतच्यावित्यक्तदेहं च तत्र - व्यपगतम् = ओघतश्चेतना पर्यावादचेतनतत्वं प्राप्तम्, च्युतम् = जीवनादिक्रियाभ्यो विनिर्गतम्, च्यावितम् = चेतनापर्यायेभ्यो पृथक्कारितम्, तथा त्यक्तदेहम्= त्यक्तः = परित्यक्तो जीवेन देहो यस्य तत् जींवसम्बन्धरहितमित्यर्थः, एषां समाहार द्वन्द्वः, तद्, उक्तार्थे स्पष्टयति- ' फासूयं च ' प्रासुकं च प्रगता असवः प्राणा यस्मात्तत्तथोक्तम्, तथा ' ववगयसंजोगं' व्यपगत-संयोगम्-संयोजनादोषवर्जि तम्, 'अगिंगालं ' अनङ्गारम् अङ्गारदोषवर्जितम् तथा-' विगयधूमं विगत उत्पादन दोषों से, तथा दशविध एषणा दोषों से जो शुद्ध हो, तथा( बवगय चुयचवियचन्तदेहं च ) जो आहार व्यपगत हो, च्युत हो, च्यावित हो और व्यक्त देह हो, अर्थात् व्यपगत- सामान्यरूप में जो चेतना पर्याय से रहित होकर अचेतनत्व अवस्था को प्राप्त हुआ होसचित्त न हो किन्तु अचित्त हो, च्युन जीवनादि क्रियाओं से जो सर्वथा रहित हो, च्यावित-भृत्यादि द्वारा चेतना पर्यायों से पृथक कराया गया हो और व्यक्त देह-जीव के सम्बंध से विहीन हो। इसी बात को सूत्रकार स्पष्ट करते हैं - ( फालुयं ) जिस आहार को साधु अपने उपयोग में लेवे वह प्रामुक होना चाहिये । प्रासुक में " " रहित अर्थ का बोधक है, असु प्राण का वाचक है अर्थात जो आहार प्राणों से-जीवों से रहित होता है वह प्रासुक है । तथा ( ववगयसंजोगं ) संयोजनादोष से वह आहार रहित होना चाहिये। (अनिंगाल) अंगार
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સાળ પ્રકારના ઉત્પાદન દોષોથી, તથા દશ પ્રકારના એષણા દ્વેષથી જે શુદ્ધ होय, तथा ववगयचुय - चवियचत्तदेह च " ने आहार व्ययगत होय, भ्युत હાય, ચ્યાવિત હાય, અને ત્યક્ત દેહ હાય, વ્યપગત એટલે સામાન્ય રીતે જે ચેતના પર્યાયથી રહિત થઇને અચેતનત્વ અવસ્થા પામ્યા હાય-ચિત્ત ન હાય, શ્રુત એટલે જીવનાદિ ક્રિયાએથી સર્વથા રહિત હાય તેવા, ચ્યાતિ એટલે નાકર આદિ દ્વારા ચૈતના પોંયાથી અલગ કરાવેલ હોય, ત્યક્ત દેહજીવના સંબંધથી રહિત હાય, એવા આહાર સાધુએ લેવા જોઇએ. એ જ वातने सूत्रार स्पष्ट उरे छे " फासूयं " ? आहार साधु पोताना उपयो गमां से ते आसु होवो लेभे प्रसुभां " प्र" रहित अर्थनो मोघउ छे,
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? भाहार प्रशोथी - कोथी रहित
असु " आणुनी मोघ छे, भेटखे હાય છે તે પ્રાસુક આહાર કહેવાય घोषथी ते भाडार रहित होवो ले मे.
છે.
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તથા aarय संजोय " संयोजना “ अणिगालं " संगार होषथी रहित