________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
...................................
सुदर्शिनी टीका अ०५ सू०५ संयताचारपालकस्थितिनिरूपणम् पमाननयोः, तथा-'समियरए' शमितरजाः शमितम्-उपशान्तं रजः पापं यस्य सः, अथवा-शमितं रत-विषयेष्वनुरागो यस्य सः, यद्वा-शमितो रया-विषयौत्सुक्यं यस्य सः, तथा-समियरागदोसे ' शमितरागद्वेषः-शमितौ रागद्वेषौ यस्य सः, तथा-' समिए समिईसु' समितः समितिषु-पञ्चसमितिपरायण इत्यर्थः, 'सम्मट्ठिी' सम्यग्दृष्टिः । तथा- 'जे य ' यश्च 'सन्चपाणभूएसु' सर्वप्राणभूतेषु सर्वे च ते प्राणाः द्वीन्द्रियादित्रसाः, भूताः स्थावरास्तेषु ' समे' समः, ' से हु ' स खलु — समणे' श्रमणः 'सुयधारए ' श्रुतधारकः " उज्जुए ' ऋजुका अवक्रः, अथवा-उद्युक्तः-आलस्यवर्जितः, 'संजए ' संयतः ' मुसाहू' सुसाधुः मुष्ठुनिर्वाणसाधनपरः, तथा सव्वभूयाणं , सर्वभूतानां षड्जीवनिकायस्थ दृष्टि से नहीं निहारता है । ( माणावमाणए समे य ) मान और अप. मान में वह हर्ष विषाद से विहीन होता है । ( समियरए ) उसके पाप उपशान्त हो जाते हैं। अथवा-विषयों में अनुराग या उसका ओत्सुक्यभाव उसका सर्वथा शान्त हो जाता है ( समियरागदोसे ) रागद्वेष शमित हो झाते हैं । ( समिए समिईसु) पांच समितियों में वह समित परायण होता हुआ ( सम्मदिट्ठी ) सम्यक्दृष्टिवाला बन जाता है। और (जे य सव्वपाणभूएसु समे) समस्त द्वीन्द्रियादिक त्रस जीवों पर और स्थावररूप समस्त भूतों पर उसका भाव एकसा हो जाता है। (से हु समणे ) ऐसा वह श्रमण (सुयधारए) श्रुतका धारक बन कर ( उज्जुए ) वक्रता या आलस्य से रहित ( संजए ) सम्यक् यतनावान ही हो जाता है और (सुसाहू) हरएक प्रकारकी अपनी प्रवृत्तिको यतनाचारपूर्वक करने के कारण वह सच्चे अर्थमें साधु-निर्वाण-मोक्षके साधन नथी. " माणावमाणए समे य" भान भने अपमानमा ते विषा४ हित मनी नय छ “ समियरए " तेना पा५ ५शान्त थ छे. अथाવિષયે પ્રત્યે અનુરાગ કે તેમના પ્રત્યેની ઉત્સુકતા તદ્દન શાન્ત થઈ જાય છે. "समियरागदोसे" तेना रागद्वेषनु शमन नय छे. "समिए समिईसु" पांय समितिमामा ते समित-५२।ने “सम्महिद्वी" सभ्यष्टिवानी Mय छे. मने ‘जे य सव्वषाणभूएसु समे ” समस्त विन्द्रिया िवो ५२ याने स्था१२३५ समस्त भूत। ५२ तेना समला थाय छे. “से हु समणे" मेवात श्रम "सुयधारए" श्रुतने पा२४ मनीने "उज्जुए" ५४ साथी २लित " संजए" सभ्यश्यतनापाको मनी नय छ भने “ सुसाहू " पोतानी દરેક પ્રકારની પ્રવૃત્તિ યતનાચારપૂર્વક કરવાને કારણે તે સાચા અર્થમાં સાધુ
For Private And Personal Use Only