Book Title: Prashnavyakaran Sutram
Author(s): Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti
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८५४
प्रश्नव्याकरणसूत्रे ओकरणपामिव्व मीसगकोयगडं पाहुडं वा दाण? - पुण्णहपगडं समणवणीमगट्टयाए वा कयं पच्छाकम्नं पुरेकम्म नितिगमुदगमक्खियं अइरित्तं मोहरं सयगाहं आहडं मट्टि.
ओवलितं अच्छेजं चेव अणिसिट्र, जं तं तिहिसु जण्णेसु उस्सवेसु य अंतो वा बहिं वा होज समगट्ठयाए ठवियं ठविचं हिंसासावजसंपउत्ते न कप्पइ तं पि य परिघत्तुं ॥सू०३॥ टीका-'जंपि य ' इत्यादि।
'जंपिय' यदपि च ' ओदणकुम्मासगंजतप्पणमंथुभज्जियपललमूवसंकुलिवेढिमवरिसोलगचुण्णकोसगपिंडसिहरिणी वट्टगमोयगावीरदहिसप्पिनवणीयतिलगुडखंडमच्छंडियमधुखज्जकवंजणविहिसाइयं ' ओदनकुल्मापगअतर्पणमन्थु-भजितपललमूपशकुलिवेष्टिमवर्षोलकचूर्णकोशकपिण्डशिखरिणीवर्तकमोदकक्षीरदधिसर्पिनेवनीततिलगुडखण्डमत्स्यण्डिकामधुखाद्यकव्यञ्जनविध्यादिकम् , तत्र - ओदनाः-प्रसिद्धाः, कुल्माषाः = मापाईपत्स्विन्ना मुद्गादयो वा, गञ्जः = भोज्यविशेषः, तर्पणाः = सक्तयः, मन्थुः = बदरादिचूर्णम् , भजितं केवलाग्निपक्ययवगोधूमधानादिकम् , पललम् = तिलपिष्टम् , भूपः = मुद्गादिदालिः,
फिर भो अकल्पनीय वस्तुओं को कहते हैं- जंपिय' इ.
टीकार्थ-(पि य-ओदग-कुम्मास-गंज-तप्पण-मंथु-भज्जियपलल-सूव-संकुलि-बेढिम-वरिसोलग-चुणकोसग-पिंड-सिहरिणी - घट्टग-मोयग-वीर-दहि-सप्पि-नवणीय-तिल-गुड-खंड-मच्छंडियमधु--खज्जक--बंजण- विहिमाइयं-पणीयं ) जो भी ओदनभात, कुल्माष-माष-उड़ा अथवा कुछ २ पके हुए मुंग आदि अन्न गज्ज-भोज्यविशेष, तर्पण-सत्तू , मंथु-बदर (बेर ) आदि का चूर्ण,
quft al७७ ५५ २५४६५नीय १२तु। सूत्र.४२ मताये थे-“पिय'' त्या
टी -"जंपिय-ओदण-कुम्मासं--गंज-तापग-मंथु-भज्जिय-पलल-सूत्र-सं. कुलिवेढिम-वरिसोलग-पिंड-सिहरिणी-बट्टग-मोयग-खीर-दहि-समि-नवणीय-तिल-गुड-मच्छंडिय--मंस-खज्जक-वंजण-विहिमाइयं पणोय' " ओदन-भात, कुल्म'ष-मा५-456 अथवा यो थाई ५३ मा या मन, गञ्जसे प्रा२र्नु लोकन, तर्पण-सत्त, मंथु-मा२ माहितुं यूषु, भर्जित मनिमा
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