________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदर्शिनी टोका अ०४ सू० १ 'विनय' ब्रह्मचर्य' स्वरूपनिरूपणम्
७ঙé
-
हदेसगं च ' सुगतिपथदेशकं च सुगते : = स्वर्गापवर्गस्य पन्थाः - सुगतिपथस्तस्य देशकं दर्शक यत्तत् तथा-' लोगुत्तमं च ' लोकोत्तमं च लोकत्रयश्रेष्ठश्च 'वयमिर्ण' व्रतमिदम् इदं ब्रह्मचर्यरूपं व्रतं 'पउमसरतलागपालियभूयं' पद्मसरस्तडागपालिभूतम् -पद्मप्रधानः सरस्तडागः-पद्मसरस्तडागः, पद्मसरस्तडागइव सुखदत्वेन प्रमोदकत्वेन इरत्वेन च समुपादेयत्वाद् धर्मोऽपि पद्मसरस्तडागः, तस्य पालिभूतंरक्षकत्वेन पालिकल्पं यत्तत्, तथा महासगड अगर तुंबभूयं महाशकटारकतुम्बभूतम् -महाशकटस्य=अरका इव-अराइव अरकाः क्षान्तादयोगुणास्तेषां तुम्बभूतम्, आधार भूतम् तथा - 'महाविडिमरुवकसंघभूयं महाविटपवृक्षस्कन्धभूतम् - महान्तो विटपाः शाखा
3
पदेसगं च ) और उसे स्वर्ग और अपवर्गरूप सुगति के मार्ग को दिख लाता रहता है । इसीलिये ( वयमिणं ) यह व्रत (लोगुत्तमं च ) लोक
य में श्रेष्ठ है । तथा यह व्रत ( पउमसरतलाम पालिभूयं ) पद्मप्रधान सरोवर और तडाग की पालि जैसा है, अर्थात् सुखद होने के कारण, प्रमोद कारक होने के कारण, और मन को हरण करने वाला होने के कारण जैसे पद्मप्रधान सरोवर और तडाग समुपादेय होते हैं उसी प्रकार सुखदाता प्रमोदक और मनोहर होने के नाते धर्म भी समुपादेय होता है अतः धर्म भी पद्मप्रधान सरोवर और तडाग जैसा है । उस धर्म रूप सरोवर और तडाग का यह रक्षक होने के कारण पालि-पाल जैसा है। तथा ( महासगडअरगतुंषभूर्य) महाशकट के आरों के समान क्षान्त्यादिक गुणों का यह तुम्बभूत आधारभूत है। तथा (महामिभूयं ) महाशाखा शाली वृक्ष के समान आश्रितों
सतर शेठी हे छे. “सुगइपदेसगंच" अने तेने स्वर्ग भने अपर्णा ३५ सुगतिना भार्ग दर्शाव रहे छे. तेथी "वयमिणं " यावत “ लोगुत्तमंच "त्र सोभां श्रेष्ठ छे. तथा मा मत " पउमसरतला गपालिभूयं " उभणोथी युक्त सरोवर અને તળાવની પાળ જેવુ છે. એટલે કે સુખદ હાવાને કારણે, પ્રમેાદ્યકારક હાવાને કારણે, અને મનેહુર હાવાતે કારણે જેમ પદ્મપ્રધાન સરોવર અને તળાવ સમુપાદેય હોય છે તે જ પ્રકાર સુખદાતા, પ્રમેક અને મનહર હાવાને કારણે ધમ પણ સમુપાદેય હાય છે. તેથી ધમ પદ્મયુક્ત સરોવર અને તળાવ જેવા છે. તે ધરૂપ સરોવર અને તળાવનું તે (બ્રહ્મચર્ય રક્ષક होवाथी पानेवु छे. तथा “ महासगडअरगतुंबभूयं " महा शउट-गाडा-नी ધરીના સમાન ક્ષાન્ત્યાદિ ગુણ્ણાનુ' તે તુમ્મભૂત છે. તથા महाविमरुवखक्खंधभूयं ” भड्डा शाभावाणा वृक्षनी प्रेम माश्रितोनु परभ सुमारी होवाथी
66
For Private And Personal Use Only