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૭૪ર
प्रश्नब्याकरणसूत्रे तदेव स्पष्टयति- देवकुल-समा-प्पका-सह-रुक्खमूल-आरामकंदराऽऽगर-- गिरिगुहा-कम्मंतु-ज्जाण-जाणसाला-कुवियसाला-मंडय-मुन्नघर--सुसाण-लेण आवणे ' देवकुलसमाप्रपाऽऽअथवृक्षमूलारामकन्दराऽऽरगिरिगुद्दाकर्मान्तोद्यानयानशाला कुप्यशालामण्डपशून्यगृहश्मशानलयनापणे-तत्र-देवकुलम् व्यन्तरादि देवगृहम् , सभा-सभागृहं यत्र समय समये मन्त्रणार्थ जना आगत्य संमिलन्ति तत् , प्रपा-पानीयशाला, आवसथा परिव्राजकगृहम् , क्षमूलं-प्रसिद्धम् , आरामः माधवीलतादिपरिमण्डितोरमणीयो यनविशेषः, कन्दरा-दरी, आकरो-लौहाद्यु. त्पत्तिस्थानम् , गिरिगुहा-प्रतीता, कर्मान्तः सोहाकारादिशाला 'कारखाना' 'मील' 'जीण' इत्यादि नाम्ना प्रसिद्धं स्थानम् । उद्यानम्-उपवनम् , यानअदत्तादान विरमण ब्रत की परिरक्षा के निमित्त कही गई हैं ( पढम ) उनमें प्रथम भावनो इस प्रकार है-इस प्रथम भावना का नाम विविक्तवसतिवाम है ! इसमें साधुओं को कहां निवास करना चाहिये यह प्रकट किया गया है, (देवकुलसभा-प्पवा-वसह-रुक्खमूल-आराम-कंदरागारगिरिगुहा-कम्मंतु जाण-जाणसाला-कुवियताला-अंडव-जुन्नघर-सुसा. ण-लेण-आवणे) देवकुल में-पन्तर आदि देवों के स्थान में, सभा में-जहां पर मंत्रणा के लिये आकर समय २ पर मनुष्य एकत्रित होते हैं ऐसे स्थान में, प्रपा में-पानीयशाला में, आवमय में-परिव्राजकों के घरों में, वृक्षमूल में-तरु के नीचे में, आराम -माधवीलता आदि से परिमंडित रम्यवन में, कन्दरा में-गुफा में, आकर में-लोहादिक धातु
ओं के उत्पत्ति स्थान में, गिरिगुहा में-पर्यत की गुफा में, कर्मान्त मेंलोहकार आदि की शाला में, कारखाना-धील-इत्यादि नाम से प्रसिद्ध हान विभाग प्रतनी परिक्षाने भाटे मतावामा आधी 2. " पढम" तमांनी પહેલી ભાવનાનું નામ “વિવિકતવસતિવાસ” તેમાં સાધુઓએ ક્યાં વાસ કરે ते मताव्यु छ. " देवकुल सभा-पवा-सह-रुक्खमूल-आराम--कंदरागार-गिरिगुहा-कम्मतु-ज्जाण-जोणताला-कुवियसाला-मंडव सुन्नघर-सुताण-लेण-आवणे" દેવકુલમાં–વ્યન્તર આદિ દેવનાં સ્થાનમાં, સભામાં જ્યાં મંત્રણાને માટે આવીને વખતોવખત માણસો એકડા થાય છે એવા સ્થાનમાં, પ્રપામાં-પાનીયશાળમાં. આવસથમાં-પરિવ્રાજકનાં ઘરમાં, વૃક્ષમૂળમાં-ઝાડની નીચે, આરામમાં-માધવી લતા આદિથી આચ્છાદિત રમ્યવનમાં, કન્દરામાં-ગુફામાં, આકરમાં-લેતું આદિ ધાતુઓની ખાણમાં, ગિરિગુહામા–પર્વતની ગુફામાં. કર્માન્તમાં-લુહાર આદિની શાલામાં, કારખાના-મીલ આદિ નામે પ્રસિદ્ધ સ્થાને માં, ઉદ્યાનમાં-બાગમાં,
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