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सुदर्शिनी टीका अ३ सू०८ शय्यापरिकर्मवजन'नामकतृतीयभावनानिरूपणम्७५३ इति भाषा प्रसिद्ध, फलाः= पाट' इति भाषा प्रसिद्धः, शय्या शरीरप्रमाणा, संस्तारकाः सार्द्धहस्तद्वयपमाण आसनविशेषः, तदर्थ स्क्वा' वृक्षाः 'छिदियव्या' छेत्तव्य । ' न य' न च ' छेयणभेयणेण ' छेदनभेदनेन छेदनं तद्भूम्याश्रितक्षाणां कर्तनम् , भेदन गापाणादीनां द्विधाकरणम् , अनयो समाहारः तेन तथोक्तेन च ' सेज्जा' शय्या ' न कारियना' न कारयितव्या परः । तथा ' जस्रोष' यस्यैव गृहपतेः ' उपस्सए' उपाश्रये असतो 'वसेज्जा' वसेत् , । तत्थेव । तत्रैत्र 'सेन्ज' शय्यां---शयनीयं 'गवेसेज्ना' गवेषयेत्कुर्यादित्यर्थः । च-पुनः 'नय वि समंसा करेजा' विषमां भूमि समां कुर्यात् । 'न य ' न च 'निवायपवायउस्सुगत्तं ' निवातप्रवातोत्सुकत्वम्-निवातं-निर्वातस्थानम् , पातं अष्टमायुयानम् , तत्र-उत्सुकत्वम् उत्सुकतां ' न करेज्जा' पोट-बाजोट, फलक-पाट, शण्या-शरीरप्रमाण, संस्तारक-ढाई हाथप्रमाग आसनविशेष, साधु संबंधी इन वस्तुओं को बनवाने के निमित्त (रूखा न छिदियचा ) वृक्षों को नहीं काटना चाहिये। और (न य छेयण-भेयणेण सेज्जा कारियव्या) न उनके छेदन, भेदन से शय्या करवानी चाहिये । वृक्षों का कटवाना इसका नाम छेदन है और उनका फडवाना इसका ना भेदन है। तथा (जस्सेव उवस्सए वसेज्जा सेज्जतथेव गवेसेज्जा) जिस गृहपति के ( उवस्सए) उपाश्रय में-वसतिस्थान में साधु (बसेज्जा) बसे-रहे, (तत्थेव) वहीं पर अर्थात्-उसी मकान मालिक से अथवा उसी वस्ती से (सेज्जं गवेज्जा) शय्या की गवेषणा करे न य विसमं समं करेजमा) वहां की भूमि को यदि वह विषम-ऊंची नीदी हीये नो उसे सम-एकसी न करे, और (न य निवाय पोय उस्सुगर ) न वह निर्यात स्थान की तथा प्रवात स्थान की ५४-पाट, शल्या-शरीरप्रमाण, सस्ता२४-२ढी हायना भानुं से मासन, माहि साधुने ७५ये थी मनावाने भ.2 “ रुक्खा न छिदियव्वा" वृक्षोने ४५i ने नही, अने “ न य छेयण भेयणेण सेज्जो कारियव्वा" तभन છેદાવી ભેદાવીને શય્યા કરાવવી જોઇએ નહીં. વૃક્ષોને કપાવવા એટલે તેમનું छन भने तभने सपा तेनु नाम लेहन छ, तथा “ जस्सेव उवस्सए वसेज्जा सेज्ज तत्व गवेसेज्जा" २ तिना “ उवस्सए” उपाश्रयमा वसतिस्थानमा साधु " वसेजा" पसे-२७, “तत्थेव"
त्यांत भानमा पासेथी अथवा ते पस्तीमाथी “सेज्ज गवेसेजा" शय्यानी गवेषा ४२ " न य विसर्ग समं करेजा" न त्यांनी भीन विषम-थी नीयी डाय तो तेने मेसरजी न अने “ न य निवाय पवाय उस्सुगत्तं"
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