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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
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कृतं ' ' तीरियं ' तीरितं=तीरं प्रापितं पूर्णरूपेण सेवितं, 'किट्टियं कीर्त्तितम् - अन्येषामुपदिष्टम्, ' आराहियं ': आराधितम् त्रिकरणत्रियोगैः - सम्यगाचरितम्, आणाए ' आज्ञया सर्वज्ञवचनानुसारेण 'अणुपालियं ' अनुपालितं भवति । 'एवम् अमुना प्रकारेण ' नायमुणिणा' ज्ञातमुनिना = ज्ञाताख्यप्रसिद्धक्षत्रिय वंशोद्धवेन मुनिना भगवता महावीरेण ' पण्णवियं प्रज्ञापितं - शिष्येभ्यः सामान्यतया कथितं, ' परूवियं ' प्ररूपितं भेदानु भेदमदर्शनपूर्वकं कथितं, 'पसिद्धं ' प्रसिद्धं= जिनवचने प्रख्यातं ' सिद्धवरसासणमिणं सिद्धवरशासनमिदं, सिद्धानां निष्ठि तार्थानां वरशासनं - प्रधानाज्ञारूपम्, 'आधवियं' आख्यातं = सर्वतोभावेन कथितं, ( तीरियं) पूर्णरूप से इसका सेवन करते हैं ( किट्टियं ) दूसरों को इसके पालन करने का उपदेश देते हैं, ( सम्मं ) तीन करण तीन योगों से इस की भली प्रकार से ( आराहियं ) अनुपालना करते हैं ( आणाए अणुपालियं भव) उन के द्वारा यह योग तीर्थकर प्रभु की आज्ञानुसार ही पालित होता माना जाता है । ( एवं ) इस प्रकार से ( णायमुणिणा भगवया) ज्ञातनामक प्रसिद्ध क्षत्रियवंश में उत्पन्न हुए मुनिराज भगवान महावीर ने ( पण्णवियं ) शिष्यों के लिये इस विषय का सामान्यरूप से समझाया है । ( परुवियं) बाद में भेद प्रभेद पूर्वक उसका कथन किया है । इसीलिये (पसिद्धे ) जिनवचन में यह प्रख्यात हुवा है अर्थात् जिनवचन के अनुसार ही आचार्य परंपरा से इसका पालन करना इसी रूप से चला आ रहा है। तथा ( सिद्धवरसासणमिणं ) भूतकाल में जितने भी सिद्ध हो चुके हैं उनका यह प्रधान आज्ञारूप शासन है । ( आघवियं) ऐसा भगवान् महावीर प्रभु मे
यासन उरवाना अन्यने उपदेश आये छे. " सम्मं " शु शुभ योगोथीं
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तेनुं सारी रीते “ आराहिय " अनुपालन मेरे छे, “ आणाए अणुपालि भइ " તેમના દ્વારા આ યાગનું, તીથંકર પ્રભુની આજ્ઞા અનુસાર પાલન થાય છે शुभ मानवामां आवे छे. " " एवं " मारे " णायमुणिणा भगवया જ્ઞાત નામના પ્રસિદ્ધ ક્ષત્રિય વંશમાં ઉત્પન્ન થયેલ મુનિરાજ ભગવાન મહાવીરે “ पण्णविय' ” शिष्याने भाटे या विषय सामान्य ३ये समव्यो छे, " परूविय" त्यार माह लेह प्रलेह सहित तेनुं प्रथन ड्यु छे. तेथी “ पसिध्धे " निनवચનમાં તે પ્રખ્યાત થયેલ છે એટલે કે જિનવચન અનુસાર જ આચાર્ચ પર પરાથી તેનું આ રીતે પાલન કરવાનું ચાલ્યું આવે છે. તેથી सिद्धवरसासणमिणं " भूतप्राणमां भेटला सिद्धो यह गया छे तेभनुं या मुख्य भाज्ञा રૂપ શાસન છે. " आघविय " मेवु भगवान भडावीरे सर्व लावथी तेने
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