________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
७४
प्रशव्याकरणसूत्रे क्तम् , ब्रह्मचारिणोऽन्तःकरणं प्रशस्ततागाम्भीर्यस्थैर्ययुक्तं भवतीति भावः । तथा - ' अज्जवसाहुजणाचरिय' आर्जवसाधुजनाचरितम्-आर्जवेन्सरलभावे संलग्ना ये साधुजनास्तैराचरितम् । तथा ' मोक्खमग्गे ' मोक्षमार्गः-मोक्षस्थानप्रापक इत्ययः तथा 'विसुद्धसिद्धिगइनिलये ' विशुद्धसिद्धगतिनिलयः विशुद्धा रागादिदोपवजितत्वान्निर्मलाया सिद्धिः कृतकृत्यता, सैव गम्यमानत्शन गतिस्तस्या निलयोगृहम् सिद्धिगतिप्रापकत्वात्सिद्धिस्थानमित्यर्थः, तथा 'सासयं ' शाश्वत साद्यपर्यवसितशिवसुःवजनकत्वात् , ' अव्वाबाहं ' अव्यावाधं शारीरिकमानसिकदुः खवर्जितत्वात् 'अपुणब्भवं' अपुनर्भवम्=पुनर्जन्मप्रतिरोधकत्वात् , ' पसत्थं' प्रशस्तम्-निर्मलत्वात् , तथा- सौम्भं ' सौम्यम्--सकलजनमनोमोदजनकत्वात् , कर्ता का अंतःकरण शुभ, गंभीर-अगाध, एवं स्थिर हो जाता है । तथा ( अजवसाहुजगाचरियं ) यह ब्रह्मचर्य, आर्जव में-सरल भाव में-संलग्न बने हुए साधुजनों के द्वारा आचरित किया जाता है । तथा-(मोक्ख मग्गे ) यह ब्रह्मचर्य अपने पालनकर्ता को मोक्ष स्थान की प्राप्ति कराने वाला होता है तथा ( विलुद्धसिद्धिगइ निलये ) यह ब्रह्मचर्य विशुद्धरागादि दोषों से वर्जित होने के कारण निर्मल-जो कुतकृत्यता रूप गति है उसका घर है-सिद्धि गति का प्रापक होने से सिद्धि का स्थान है तथा (सासयं) साद्यपर्यवसित शिव सुख का जनक होने से यह ब्रह्मचर्य शाश्वत है ( अब्वायाहं ) शारीरिक एवं मानसिक दुःखों से रहित होने के कारण यह ब्रह्मचर्य अव्यायाध-बाधा से रहित है। ( अपुणन्भवं । इसके प्रभाव से संसार में जीव का पुनर्जन्म नहीं होता, उसका यह प्रतिरोधक है इसलिये यह अपुनर्भवरूप है । (पलत्थं निर्मल मियमज्झ" ते ब्रह्मययन! पासनथी तेनुं पासन ४२ना२नुं मत:४२९१ शुल, आली२, माध, मने स्थिर नय छे. तया "अज्जवसाहुजण चरियं" આ બ્રહ્મચર્ય, આર્જવ, સરલ ભાવમાં લીન થયેલ સાધુજને દ્વારા આચરવામાં भाव छ. तथा “ मोक्खमग्गे" ! ब्रह्मय, तेनुं पासन ४२नारने मोक्षनी प्राति १२ ।य छ. तथा “ विसुद्धसिद्धिगइनिलये " २al प्रायः विशुद्ध રાગાદિ દેથી રહિત હોવાને લીધે નિર્મળ-કે કૃતકૃત્યતા રૂપ ગતિ છે તેનું ५२ -सिद्धिगति प्रात ४२२वाना२ पाथी सिद्वनुं स्थान थे, तथा “ सासयं" आयमी शिव सुमनु न पायी २ प्रययं यत छ “ अब्बावाह" શારીરિક અને માનસિક દુઃખોથી રહિત હોવાને કારણે આ બ્રહ્મચર્ય અવ્યાमाघ-माधाथी २डित छ, “ अपुणब्भय" तेना प्रमाथी संसारमा वने પુનર્જન્મ લે પડતો નથી. તેનું તે પ્રતિરોધક છે તેથી તે અપુનર્ભવરૂપ છે.
For Private And Personal Use Only