________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदर्शिनी टीका अ०३ सू०६ 'विविक्तववतिवाल'नामकप्रथमभावनानिरूपणम् ७४३ शाला स्थादिगृहम् , कुप्यशाला गृहोपकरणशाला, मण्डपः विश्रामस्थानम् , शून्यगृह-प्रसिद्धं, श्मशानम्-प्रसिद्धम् , लयनं गृहम् , आपण पण्यस्थानम् , ' हाट' इति भाषा प्रसिद्धम् , एषां समाहार द्वन्द्वस्तस्मित्तथोक्ते, अर्थात्-देवकुलादिरूपेऽष्टादशविधे, तथा-' अन्नमिय ' अन्यस्मिंश्च 'एबमाइयंमि' एवमादिक एवं विधे कथं भूते ? इत्याइ-' दगमट्टिय-बोय-हरिय-तस पाण असंसत्ते' दकमृत्तिका बीजहरितसमागसंसक्ते-दकम् जलम् , मृत्तिका-प्रतोता, वीजानिशाल्यादीनि, हरितानि-यूादीनि असमाया-दीन्द्रियादयः, तैररांसक्ते-हिते, पुनः कीदृशे ? 'आहाकडे' यथावते इस्थेन स्वार्थ निर्मिते 'फासुए ' प्रामुके =निदोषे विविक्ते स्वीपशुपण्ड करहिते, अत एव- पसत्थे ' प्रशस्ते श्रेष्ठे साधुनिवासयोग्ये ' उक्स्राए' उपाश्रये-साधुभिः 'विश्यव्यं' विहर्त्तव्यं= आश्रयितव्यं ' होइ' भवति । एतादृशे उपाश्रये साधुभिर्निवासः कर्तव्य इत्यर्थः। स्थान में, उद्यान में-उपवन में, यानशाला में-स्थादि गृह से, कुप्यशाला में-गृहोपकरण रखने के स्थान में, मंडप में-विश्राम स्थान में-शून्य गृह में-सूने घर में, इमशान में-मरघट में, लवन में-पर्वत की तलहटी में निर्मित पाषण घर में, आपण में-हाट में (अनमि य एवमाइयमित) तथा इसी तरह के दूसरे स्थान में कि जो (दशमट्टिय-बीय-हरिय-तसपाण असंसत्ते) जल, मृत्तिका, बीज, दूर्वा, द्वीन्द्रियादिक ब्रस, इन से रहित हो, तथा ( अहाकडे ) जिस गृहस्थ ने अपने निमित्त बनवाया हो, एवं जो ( फालुए) निर्दोष हो, तथा (विवित्त ) स्त्री, पशु, पंडक से रहित हो और ( पसतो) प्रशस्त-साधजनों के निवास योग्य हो ( उवस्सए) ऐसे उपाश्रय में (होइविहरियव्यं ) साधुओं को रहना चाहिये। (अहाયાનશાલામાં રથાદિ ગૃહમાં, કુખ્યશાલામાં-ગૃહપકરણ રાખવાની જગ્યામાં, મંડપમાં વિશ્રામ સ્થાનમાં, શૂન્યગૃહમાં-સૂના ઘરમાં, સ્મશાનમાં (મરઘરમાં, स्यानमां-पतनी तोटीमा स्येस पाषाधमां, मामा-मां, " अन्नम्मि य एवमाइयम्मि" तथा से ४ ४२न मन्य स्थानमा ? " दगमट्टिय-बीय -हरिय-तसपाणअसंसत्ते" ४ माटी, . दूर्वा, द्विन्द्रीया िस मे
पाथी २हित हाय, तथा “ अहाकडं "2 -पोतान मा पनाव२०व्यु डाय, मने “ फासुए” निषि हाय, तथा “ विवित्त " श्री, पशु, ५४४थी २हित डेय, भने “ पसत्थे” प्रशस्त-साधुनाना निवासने भाट योज्य डाय " उवस्सए " सेवा उपाश्रयमा “ होइ विहरियव्वं ” साधुमसे २ न. "अहाकम्मबहुले य जेसे” भने उपाश्रय माया मga डाय
For Private And Personal Use Only