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प्रश्नध्याकरणसूत्र नैष्ठिकं सर्वधर्मप्रकर्षपर्यन्तवत्ति, निरुत्तं ' निरुक्तं-सर्वज्ञैरुपादेयत्वेन निरुक्तम् , अव्यभिचरितं वा तथा-निरासवं ' निराश्रवं-कर्मादानरहितम् , ' निभयं ' निभयं नृपादिभयरहितं ' विमुत्तं' विमुक्तं लोभदोषादिरहितम् , तथा-' उत्तमनखसभ-पवरबलबग-सुविहियजणसंमयं' उत्तमनरवृषभ-प्रवरवलवत्सुविहितजनसम्मतम-उत्तमाः उत्कृष्टा ये नरकृषभाः-नरश्रेष्ठाः जिनाः तथा-प्रवरवलवन्तः= चक्रवर्तिवासुदेवादयः, सुविहितजनाः साधुलोकास्तेषां संमतम्-अभिमतं यत्तत्तथा तथा-' परमसाहूधम्मचरणं' परमसाधुधर्मचरणं परमसाधूनाम्-उत्कृष्टपतस्विना धर्मचरणं-धर्मपालनम् यत्तत्तथा, एतादृशमिदं दत्तानुज्ञातसंगरद्वारम् । अत्र तृतीये आभ्यन्तर परिग्रह दूर हो जाता है, अर्थात् यह व्रत बाह्य और आभ्यन्तर की ग्रन्थि से रहित होता है तथा (णेट्ठियं ) समस्तधर्मों के प्रकर्षपर्यन्त यह रहता है, एवं (निरुत्तं ) सर्वज्ञ प्रभुने इसे उपादेयरूप से कहाहै, अथवा यह अव्यभिचरित है, अर्थात् जितना भी सकल. संयमी का धर्म है उसके साथ यह अविनाभावी है । (नीरासवं) इसमें नवीन कमों का आदान नहीं होता है । ( निभयं ) नृपादि का भय इसके आचरण में साधु को नहीं रहता है इसलिये यह निर्भय है। (विमुत्तं ) लोक दोष आदि से यह रहित होता है । ( उत्तमनरवसभ, पवरबलबग-सुविहिग्रजणसंमयं ) उत्कृष्ट जो नरवृषभ-जिनदेव हैं तथा बलदेव वासुदेव आदि जो प्रवरबलवंत व्यक्ति है, तथा सुविहितजन जो साधु लोक हैं, इन सब के लिये यह मान्य है । तथा ( परमसाहुधम्मचरणं ) परमसाधुजनों-उत्कृष्टतपस्विजनों का यह धर्माचरणरूप हैं । (अदत्तादानविरमण ) ऐसा यह दत्तानुज्ञातसंवरद्वार है। इस થઈ જાય છે. એટલે કે આ વાત બાહ્ય અને આભ્યન્તરની ગ્રથિી રહિત डाय छ, तथा “णेट्ठियं " ते समस्त धर्भातुं ५४ पर्यन्त छ, भने “ निरुत्तं" સર્વજ્ઞ પ્રભુએ તેને ઉપાદેયરૂપે બતાવ્યું છે, અથવા તે અવ્યભિચરિત છે, એટલે है सयभान रेखi तव्यो छे तेनी साथे ते सुसात छ. " निरासवं" तेनाथी नवीन ४ मधाता नथी. “ निभयं " तेने मायरपामा साधुने नयाहिनो लय तो नथी तथा ते निलय छे. “ विमुत्तं' बोल, हो५ माहिथी ते २डित डाय छे. " उत्तमनरवसभ, पवरबलवग-सुविहिय जणसंमयं" श्रेष्ठ નરવૃષભ-જિનદેવ છે, તથા બળદેવ વાસુદેવ આદિ જે પ્રબળ બળવાન પુરુષે છે, તથા સુવિહિત જન જે સાધુલેક છે, તે સૌને માટે તે માન્ય છે. તથા " परमसाहुधम्मचरणं " रे ५२म साधुन! See d५२वीनाने भाटे ते ધર્માચરણરૂપ છે, એવું આ અદત્તાદાન વિરમણ-દત્તાનુજ્ઞાત સંવરદ્વાર છે. આ
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