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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
' अचियत्त भत्तपाणं' अप्रतीतिकारकभक्तपानं वर्जितव्यम् अविश्वासभाजनस्य भक्तपानं न ग्राह्यमित्यर्थः, तथा-' अचियत्तपीढफलग सेज्जासंधारगवत्थपायकंबलदंड गरओहरण नि से ज्जचोलपट्टगमुहपोत्तियपायपुंणाइभायणभंडोव दिउवगरणं' अमतीविकारकपीठफलशय्या संस्तारकवस्त्र पात्र कल्वलदण्ड करजोहरण निषद्याचोलपकसदोरकमुखात्रिका पादपोञ्छनाविभाजनभाण्डोपध्युपकरणं वर्जितव्यम्, अविश्वासभाजनस्य पीढफलकादिकं न पीढफलकादिकं न ग्राह्यमित्यर्थः तथा ' परपरि बाओ' परपरिवादः काक्वा परदोपप्रकटनम् वर्जितव्य 'परस्स' परस्य 'दोसो' दोषश्च वर्जनीयः, परोक्षे निंन्दा, प्रत्यक्षे दोपकथनम् इत्युभयं च
,
अचियत्तघरपवेसो) जो अपनी प्रतीति- विश्वास नहीं करता हो उसके घर पर साधु को सर्वदा नहीं जाना चाहिये, तथा (अचियत्तभत्तपाणं ) जो अपनी प्रतीति नहीं करता हो उसके यहां से साधु को भक्तपान नहीं लेना चाहिये। इसी तरह ( अचियत्तपीढफलग सेज्जासंथारगवत्थपायकंबल दंडगरओहरण निसेज्जचोलपहगमुहपोत्तियपाय पुंछणाइ ) जो व्यक्ति अपने ऊपर विश्वास नहीं रखता हो उसके द्वारा प्रदत्त - ( दिया हुआ) पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक, वस्त्र, पात्र, कम्बल, दण्डक, रजोहरग, निषया, चोलपट्टक, सोरकमुखवस्त्रिका, पादमोञ्छन आदि, तथा ( भायण भंडो वहि उवगरणं ) भाजन, भांड, उपधि, ये सब उपकरण नहीं लेना चाहिये । (परपरिवाओ ) तथा कालरूप से साधु को पर के दोषों को प्रकट नहीं करना चाहिये । तथा ( परस्सदोसो) परोक्ष में निंदा करना और साम्हने दोषों को कहना ये दोनों
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का' अचिजत्तघर पवेसो " ? घताना विश्वास न उरतो होय, तेना घरे સાધુએ કદી જવું જોઈએ નહીં, તથા अचियत्तभत्तपाणं " ने पोताना पर વિશ્વાસ ન મૂકતા હોય તેને ત્યાંથી સાધુએ આહાર પાણી સ્વીકારવા लेह नहीं मे ४ रीते " अचियत्तपीढफलग से ज्जासंथारगवत्थपायकंबलदंडगरओहरनिसेज्जचोलपट्टगमुपोतियपाय पुछणाइ" के व्यक्ति योताना पर विश्वास न राजती होय तेना द्वारा अपायेंस थी, इस शय्या, सस्ता, वस्त्र, पात्र इंञण, उडे, रोहरागु, निषद्या, योसपट्टए, छोरासहित भुडपत्ति, पाह प्रोर छन् આદિ તથા भायणमंडोव हि वगरणं लाभन, ( यात्रा भांड, उपाधि, मे घां साधनो सेवा हाये नहीं. " परपरिवाओ " तथा આએ બીજાના દેષો પ્રગટ કરવા જોઇએ નહીં. તથા રીતે નિંદા કરવાની તથા સામે જ દેધા કહેવાની પ્રવૃત્તિ સાધુએ છેડવી
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अगडानी प्रेम साधु
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परस्तदोसो " परीक्ष
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