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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
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निपाता:- अर्थद्योतकाः खलु वादयः उपसर्गाः प्रवरादयः तद्धिता:- अपत्याद्यर्थाभिधायकप्रत्ययान्ताः शब्दाः, यथा - नाभेरपत्यंनाभेयः ऋषभः, सिद्धार्थस्या पत्यं सैद्धार्थो महावीरः ' इति समासः अनेकपदानामेकीकरणम् स चाव्ययीभावादिभेदादनेकविधः सन्धिः वर्णान्तं संघ नाम्, यथा 'श्रावकोऽत्रे ' -त्यादि,
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विशेषता के द्योतक जो होते हैं वे निपात हैं जैसे खलु इव आदि शब्द, प्र, परा आदि उपसर्ग कहलाते हैं । इनके संबंध से एक ही धातुके अर्थ में भिन्नता आ जाती है, जैसे 'हृ' धातु के साथ जब 'प्र' उपसर्ग का संबंध होता है तब उसका अर्थ प्रहार हो जाता है, और जब 4 आ ' का संबंध होता है तब आहार हो जाता है, इत्यादि । अपत्य आदि अर्थ के अभिधायक जो प्रत्यय है वे प्रत्यय वाले शब्द यहां तद्विन शब्द से गृहीत हुए हैं जैसे- “ नाभेः अपत्यं पुमान् नाभेयः " यहां नाभि शब्द से तद्धित प्रत्यय होने पर नाभेय बनता है तथा सिद्धार्थ शब्दसे अणू प्रत्यय होने पर 'सैद्धार्थ' बनता है, ये तद्धित शब्द हैं। इसी प्रकार और भी तद्धित शब्द जान लेना चाहिये । परस्पर संबंध रखने वाले दो वा दो से अधिक पदों की बीच की विभक्ति का लोप करके मिले हुए अनेक पदों का नाम समास है । समास अव्ययी भाव आदि के भेद से अनेक प्रकार का होता है। संधि शब्द का अर्थ मेल होता है-अर्थात्-वर्णों की
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अने भवति (छे ). भे शम्हो अर्थभां विशेषताने हर्शाचे छे नेभने निपात કહે છે. જેમ કે खलु इव" यहि शब्द " प्र " परा " साहि ઉપસર્ગો છે, તેમના ઉપયાગથી એક જ ધાતુના અર્થમાં ફેર પડી જાય છે, प्रेम " हृ " धातु साथै न्यारे " * ઉપસર્ગ મૂકવામાં આવે છે ત્યારે तेनो अर्थ " ' થઈ જાય છે, અને જ્યારે તેની આગળ પ્રહાર સગ મૂકવામાં આવે ત્યારે તેના અર્થોં “આહાર થઈ જાય છે, અપ્રત્ય આદિ અને દર્શાવનાર જે પ્રત્યયેા છે તે પ્રત્યયવાળા શબ્દોને અહી " तद्धित शब्दथी उडेल छे, प्रेम - " नाभेः अपत्यं पुमान् नाभेयः " " नामि" शब्दने તન્દ્રિત પ્રત્યય લાગવાથી " नाभेय " शब्द जन्यो छे, तथा ' सिद्धार्थ ' शहने ' अण्' प्रत्यय लागता " सौद्धार्थ " भने छे, ते तद्धित शब्दो छ.
આ પ્રકારે જ ખીજા તદ્ધિત શબ્દો પણ સમજી લેા પરસ્પર સ'ધ રાખનાર એ કે એવી વધારે પદોની વચ્ચેની વિભક્તિને લેપ કરીને જોડાયેલાં અનેક પદોને સમાસ કહે છે. અવ્યયી ભાત્ર આદિ ભેદથી સમાસ અનેક પ્રકાरना छ, 'स ंधि' शब्डनो अर्थ 'लेडा' थाय छे भेटले मे पानी व्यति
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