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सुदर्शिनी टीका ४० १ ० ४ अहिंसाप्राप्तमहापुरुषनिरूपणम् ५८७ का काम देता है वे जल्लोषधि प्राप्त मुनिवर हैं। मुख से निर्गत थूक की छोटी २ बिन्दुओं का नाम विगुंड हैं । तपस्या के प्रभाव से ये मुख की बिन्दुएँ जिनकी रोगों को नष्ट करदेती हैं वे मुनिजन वि डोषधि प्राप्त कहे जाते हैं । मुनिजनों की विशिष्ट तपस्या के अनुष्ठान से कर्ण, वदन, नाप्तिका, जिह्वा और नयन इन सब इन्द्रियों का मैल औषधि का काम देता है। इस लब्धि का नाम सयौं षधि लब्धि है । यह लब्धि जिन मुनिजनों को प्राप्त होती है उनका नाम सौंषधि लब्धि प्राप्त है। जिस प्रकार बीज से विशाल काय तरु उत्पन्न हो जाता है उसी तरह जिस एक पद वाली बुद्धि से विविध अर्थों का बोध मुनिजनों को हो जाता है । इसका नाम बीजबुद्धि है। यह बुद्धि भी विशिष्ट तपस्या के प्रभाव से ज्ञानावरणीय कर्म के विशिष्ट क्षयोपशम से मुनिजन प्राप्त करते हैं । तात्पर्य इसका इस प्रकार है कि जैसे मानों इस लब्धि के धारी मुनिजन को " उत्पाद व्यय ध्रौव्ययुक्तं सत्" ( तत्त्वार्थ सूत्र २९ वां सूत्र ) इस सूत्र का बोध हो गया, ऐसे पद अर्थपद कहलाते हैं, बीजभूत इस एक ही अर्थपद के अवगत होने पर वे अपनी बुद्धि के प्रभाव से अन्य और भी विशेष अर्थ का बोध कर लिया करते हैं। जिस
“જલ્લૌષધિ પ્રાપ્ત” મુનિવરે કહેવાય છે. મોઢામાંથી નીકળતા ધૂકનાં નાનાં नानां मियाने विद्युड' ४ छ. तपस्याना प्रभावथा मन भुगना रे मिन्दुम शेगाना ना ४२॥ नामे छ तेवा मुनिश्रीने 'विठुडौषधि प्राप्त ' કહે છે. મુનિજનની વિશિષ્ટ તપસ્યાના આચરણથી, કાન, મુખ, નાક, જીભ અને આખે એ બધી ઈન્દ્રિયેને મેલ ઔષધિ જેવું કામ આપે છે. આ साधने" सौषधिलब्धि " ४ छ. म स मुनिश्रीने प्राप्त थाय छ તેમનું નામ “સર્વોષધિલબ્ધિપ્રાપ્ત” છે. જેમ બીજમાંથી વિશાળકાય વૃક્ષ ઉત્પન્ન થાય છે, એ જ પ્રકારે જે એક પદ વાળી બુદ્ધિથી મુનિજનોને વિવિધ मथेन। माघ थाय ते, तेनुं नाम 'बीजबुद्धि' छे. ते भुद्धि र विशिष्ट તપસ્યાના પ્રભાવથી જ્ઞાનાવરણીય કર્મના વિશિષ્ટ પશમથી મુનિજને પ્રાપ્ત ४२ छ तेनु ता५य मे छे 3- मे सन्धित पा२४ मुनिवरने “ उत्पादः व्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ” “तत्त्वार्थसूत्र २८ भुसूत्र" 21 सूत्री माय थर्ड ગયે, એવા પદને યથાર કહે છે, બીજભૂત આ એક જ અર્થપદને બોધ થતાં તેઓ પોતાની બુદ્ધિના પ્રભાવથી વળી બીજા વિશેષ અર્થને પણ બંધ કરી લીધા કરે છે. જેમ કેષ્ઠ-જેઠીમાં નાખેલું અનાજ લાંબા સમય સુધી
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