________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
દરર
प्रश्नव्याकरणसूत्रे मालिन्यरहिता, असंक्लिष्टा-विशुद्धधमानमनःपरिणामयुक्ता, निव्रणा=अक्षता या चारित्रभावना तया हेतुभूतया 'अहिंसए' अहिंसकः - सभावनाया अहिंसायाः परिपालकत्वात् , 'संजए' संयतः सम्यग्जीवरक्षायतनोधतत्वात् , 'मुसाहू' मुसाधुः मोक्षसाधको मुनिर्भवति ।। मू० ६ ॥ तथा विशद्धयमान मनःपरिणाम से युक्त ऐसी हेतुभूत अखंड चारित्र भावना के प्रभाव से (अहिंसए) अहिंसक होता हैं, अर्थात् भावनासहित अहिंसा का परिपालक होने के कारण वह हिंसावृत्ति से रहित होता है ।तथा ( संजए ) अच्छी तरह से जीव रक्षा की यतना में उद्यत होने के कारण संजत होता है । और ( सुसाहू ) ऐसा होने के कारण ही वह साधु-सच्चा साधु-मोक्ष साधक मुनि-होता है। ___ भावार्थ--इम सूत्र द्वारा सूत्रकार ने अहिंसावत की रक्षा और स्थिरतो के निमित्त पांच भावनाओं में से ईर्था समिति नामकी प्रथम भावना कही है,। इस भावना में उन्हों ने वह प्रकट किया है कि अहिंसावत का आराधक प्राणी यदि भावना का निमित्त नहीं मिलता है तो उस व्रत का गहराई के साथ परिपालन नहीं हो सकता है। अहिंसा आदि व्रतों के रंग में आत्मा को रंग देनेवाली ये भावनाए ही हैं । इसलिये सच्चे अर्थ में अहिंसक बनने के लिये मुनि को सबसे पहिले ईयाँ समिति का पालन करना चाहिये । इस समिति के पालन करने से भावणाए " अशघल-सिनत! २डित तथा विशुद्ध मनः परिणामयी .युत सेवा
तुभूत मक्षत-यारित्रमापनाना प्रभावी ' अहिंसए” मसि थाय छ, એટલે કે ભાવનાપૂર્વક અહિંસાના પરિપાલક હોવાથી તે હિંસાવૃત્તિથી રહિત भने छ. तथा " संजए " सारी ते ०१ २क्षानी यतनामi ५२ पाने ४२ सयत थाय छे. मने “ सुसाहू " मेवा थाने १२0 ते सुसाधु-सायो साधु-भीम साथ मुनि-थाय छे.
ભાવાર્થ—-આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે અહિંસા વતની રક્ષા અને સ્થિરતાને માટે જે પાંચ ભાવના છે તેમાંની ઈર્યાસમિતિ નામની પહેલી: ભાવના બતાવી છે. આ ભાવનામાં તેમણે એ પ્રગટ કર્યું છે કે અહિંસા વ્રતના આરાધક પ્રાણને જે ભાવનાનું નિમિત્ત ન મળે તે તે વ્રતનુ સૂફમ રીતે પાલન થઈ શકતું નથી. અહિંસા આદિ વ્રતોના રંગમાં આત્માને રંગી દેનારી આ ભાવનાઓ જ છે. તેથી સાચા અર્થ માં અહિંસક બનવાને માટે મુનિએ સૌથી પહેલાં ઈસમિતિનું પાલન કરવું જોઈએ. આ સમિતિનું પાલન કરવાથી ત્રસ
For Private And Personal Use Only