________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदर्शिनी टीका अ० २ सू० १ सत्यस्वरूपनिरूपणम्
६५१.
" सच्चे हियं सयामिह संतो मुगउ गुणा पयस्था वा " छाया - सत्यं हितं सतामिह, सन्तो मुनयो गुणाः पदार्था वा " इति सत्सु तिष्ठतीति वा, सत्यम्, सत्यं च तद्वचनं च सत्यवचनम्, परमाणत्राणपरायणं हितकरं सुखावहमनुद्वेगजनकं सुधावत्स्वादीयं वचनं सत्यवचनमित्यर्थः । कीदृशं सत्यवचनम् ? तदाह- 'मुद्धं ' शुद्धं - निर्दोषत्वात्, ' सुचियं ' शुचिकं पवित्रत्वात्, ' सिवं ' शिवं = मोक्षजनकस्वाम्, ' सुजायं ' सुजातं - शुभविवक्षया समुत्पन्नत्वात्, 'सुभासियं' सुभाषितम्
" सच्चे हियं सयामिह, संतो मुणउ गुणा पयत्था वा " । संतों का हित जिससे होता है वह सत्य मुनि होते हैं या गुण अथवा पदार्थ होते हैं । सत्य की दूसरी व्युत्पत्ति इस प्रकार से भी है (6 सत्सु तिष्ठतीति सत्यं सत्यं च तद्वचनं च सत्यवचनं " जो वचन सज्जन पुरुषों में रहता है वह सत्यवचन है । यह सत्यवचन पर के प्राणों के प्राण करने में परायण होता है, सब के हितकारी होता है, सुखदायक होता है, उद्वेगजनक नहीं होता है, और सुधा के जैसे स्वादीय- अत्यंत मधुर होता है । ( सुद्धं ) सत्यवचन में किसी भी प्रकार का दोष नहीं होता है अतः निर्दोष होने से यह शुद्ध है (सुइयं) इसमें किसी भी प्रकार की अपवित्रता नहीं होती है अतः यह पवित्र होने से शुचिक है । (सिवं ) इस वचन से जीवों को मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिये मोक्षजनक होने से यह शिवरूप है। ( सुजायं ) हार्दिक शुभ भावना से प्रेरित होकर ही ऐसा वचन बोला जाता है
"
" सच्चं हि यं सयामिह, संतो मुगउ गुणा पयत्था वा સતનું હિત જેનાથી થાય છે તે સત્ય છે, મુનિ અથવા ગુણુ અથવા પદાર્થ मे अारनां सत्य छे. सत्यनी जील व्युत्पत्ति या प्रमाणे पशु छे " सरसु तिष्ठतीति सत्यं सत्यं च तद्वचं च सत्यवचनं " समन पुरुषोमां ने वयन રહે છે તે સત્યવચન છે. તે સત્યવચન અન્યનાં પ્રાણેાનું રક્ષણ કરવાને સમથ હાય છે, બધાને માટે હિતકારી હોય છે, સુખદાયક હોય છે, ઉદ્વેગજનક हातुं नथी, अमृत नेतुं अतिशय भीठु होय छे. “ सुद्ध ं ” सत्यवयनभां । પણ પ્રકારને દોષ હાતા નથી, તેથી નિર્દોષ હેાવાથી તે શુદ્ધ છે. “ 'सुइय' તેમાં કોઇપણ પ્રકારની અપવિત્રતા હોતી નથી તેથી તે પવિત્ર હોવાથી શુચિક छे. " सिव " ते वयनथी लवोने मोक्षनी प्राप्ति थाय छे, तेथी भोक्षन होवाथी ते शिव३५ छे. “ सुजाय " डा शुल भावनाथी प्रेराईने मे વચન ખેલાય છે, તેથી શુભ ભાવનામાંથી ઉદ્ભવેલ હાવાથી તે સુજાત છે.
For Private And Personal Use Only
ܕ