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সন্ধ पापकेन अशुभेन ‘मणसा' मनसा 'पायगं' पापकम् =अशुभं भवति, 'अहम्मियं ' अधार्मिकं दुर्गतिजनकत्वात् , दारुणं--विषमम् , तीव्रदुःखजनकत्वात् , 'निसंस' नृशंसम् आत्महितघातकत्वात् , तथा-' बहबंधपरिकिलेसबहुलं' वधबन्धपरिक्लेशबहुलम् , तत्र-वधो-मारणम् , बन्धः-निगडादिबन्धः, तज्जनितः परिक्लेशः परितापस्तेन बहुलं व्याप्त-संभृतम् , प्रतिसमयमसह्य संतापजनकत्वात् , तथा - ' मरणभयारकिलेससंकिलिष्टुं ' मरणभयपरिक्लेशसंक्लिट्रम्-मरण-प्राणवियोगस्तस्य यद् भयं तज्जनितो यः परिक्लेशः-परमसन्तापस्तेन संक्लिष्टं संव्याप्तम्, नरकनिगोदाधनन्तदुःखजनकत्वात्, एतादृश-विशेषणविशिष्टं करते हैं-'बीयं च' इत्यादि ।
टीकार्थ-(धीयं ) दुसरी मनोगुप्ति नामकी भावना इस प्रकार से है (पावएण मणेण ) अशुभ मन से अशुभ होता है-अर्थात्-अशुभमन से जीव पाप का उपार्जन करता है। यह पाप ( अहम्नियं ) दुर्गति का जनक होने से अधर्म रूप है। (दारुणं ) तीव्र दुःखों का उत्पदक होने से दारुण-विषम अर्थात्-कष्टकारक होता है । तथा (निसंस) इसमें आत्मा के हितका घात होता है इसलिये नृशंस है। (वहबंधपरिकिलेनवहुलं ) वध, बंधन और इनसे उत्पन्न परिक्लेश-परितापसे यह सदा भरा रहता है । अर्थात् प्रति समय यह अमात्य संताप का जनक होता है। (मरणभयपरिकिलेससंकिलिटुं) मरग के भय से जनित परम संताप से यह व्यात रहा करता है। अर्थां-पाप से जीव नरक निगोद आदि के अनंत दुःखों को भोगा करता है। इसलिये यह टी४२५ ४२ छ-" बीयं च" त्यादि
- "बीय' भी मनाति नामनी लाना मानी छ-"पावएण मणेण " मशुम भनथी मशुम थाय छ-मे मशुम भनथी ०१ पापर्नु अपारी ४२ छ । ५५ " अहम्भियं" हुतिन न वाथी २५५३५ छ. " दारुणं" तीन मार्नु प६४ पाथी ६२४-वि५म. ट है ४४४२४ हाय छे. तथा "निसंसं" तेमा मात्माना हितनो धात याय छ तेथीते नशस छ. “ वहबंधपरिकिले सबहुलं" १५, धन भने तेमना हो . ભવેલ પરિકલેશ-પરિતાપથી તે સદા ભરેલ રહે છે, એટલે કે પ્રતિસમય તે मसहा सता५ पहा ४२ना२ डाय . " मरणभयपरिकिलेससंकिलिट" મરણના ભયથી ઉત્પન્ન થયેલ પરમ સંતાપથી તે વ્યાપ્ત રહ્યા કરે છે. એટલે કે પાપથી જીવ નરક નિગેટ આદિના અનંત દુઃખને ભેગવ્યા કરે છે. તે
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