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व्याकरणसूत्रे
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शब्दरहितम् ' अद्दु ' अद्भुतम् - नातिशीघ्रम् ' अविलंबियं ' अविलम्बितम् = नातिगन्दम् 'अपरिपाडियं' अपरिशाटितम् - परिशाटनवर्जितम्, बिन्द्वापातयजित्यर्थः, तथा - ' आलोयभायणे ' आलोकभाजने = प्रकाशयुक्तपात्रे ' जयं ' यतं = यतनापूर्वकम् ' अप्पमत्तेण ' अप्रमत्तेन - सावधानेन 'ववगयसंजोगं' व्यपगत संयोगम् = संयोजनादो परहितम् अधिकलवणादियुक्तवस्तुनोऽल १ लवणादियुक्तवस्तुनि संमेलनंसंयोगस्तद्रहितमित्यर्थः, ' अजिंगालम् ' अनङ्गारम् अङ्गारदेोपवर्जितं रागरहितमित्यर्थः, तथा - 'विगयधूमं ' विगतधूमं धूमदोषवर्जितं द्वेपरहितमित्यर्थः, तदुक्तम्'रागेण सइंगालं दोसेण सधूमगं वियागादि' इति, तथा-'अक्खोवंजणवणाणुलेवणभूर्य' अक्षोपाञ्जनव्रणानुलेपनभूतम्-तत्र अक्षस्य =शकटधुरः, उपाञ्जनम् - - [-तैलाभ्यञ्जनम् तथा - 'वणाणुलेवण' व्रणानुलेपनं त्रस्य= स्फोटकस्य अनुलेपन पधलेपनम् तयोर्भूतं = सदृशं यत्तत्, तथा संजमजायामायानिमित्तं संययात्रा मात्रा निमित्तं
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शब्द न करे (अचवचलं ) चपड चपड शब्द न करे । (अनुयं ) न बहुत जल्दी जल्दी (अविशेषियं ) न बहुत धीरातथा (अपरिसाडियं) खाते समय आहार के सीध को जमीन पर नहीं गिराता हुआ (आलोयभावणे) प्रकाशयुक्त पात्र में (जयं) घतना पूर्वक ( अप्पमत्तेणं ) बड़ी सावधानी के साथ ( ववमय संजोग ) संयोजनादि दोषरहित- अर्थात्अधिक लवण आदि से युक्त वस्तु को अल्प लवण आदि से युक्त वस्तु के साथ न मिलाकर (अणिगालं च ) अंगार दोष रहित आहारसामग्री में राग रहित तथा (विजयधूमं ) धूम दोषरहित - देवरहित (अक्खोवंजगवणाणु लेवणभूयं ) जिस प्रकार शकर की धुरा में तैल का लगाना भारवहन के निमित्त ही किया जाता है और दूसरे किसी प्रयोजन के लिये नहीं किया जाता है तथा व्रण- घाव पर मरहमपट्टी आदि का
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ચપડ પડે शब्द न उरे. “ अद्दुयं ” वधारे अडपथी जाय नहीं, ‘अविलंबिय' " वधारे धीभेथी माय नहीं तथा " अपरिसाडियं " जाती वमते महारना पहार्थने भीन पर पड़वा दीघा विना " आलोयभायणे " प्राश वाजा यात्रभां " जयं " यतना पूर्व " अप्पमत्तेनं" घड़ी सावधानीथी “ बयगयसंजोगं " सयोन्नाहि दोष रहित भेट में पधारे भीठा आदि बाजी वस्तुने थोडा भीठा याहि वाणी वस्तु साथै त्रर्या विना " अणिगालं च" अगार होष रहित भाडार सामग्रीमा राम रहित तथा " विगयधूमं " धूभ दोष रहित द्वेष रहित " अक्खोवंजणपणाणुलेवणभूयं " प्रेम गाडानी घरीभां તેલનું સિંચન ભારવહનને માટે જ કરાય છે. પણ બીજા કોઈ કારણે કરાતુ
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