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प्रश्नव्याकरणसूत्रे इत्याह-'गायमुणिणा' ज्ञातमुनिना-प्रसिद्धक्षत्रियवंशोद्भवेन मुनिना भगवता महावीरेण 'पण्णवियं ' प्रजापितम्-शिष्येभ्यः सामान्यतया कथितम् , 'परूवियं मरूपितं भेदानुभेद पदर्शनपूर्वकं कथितम् , 'पसिद्धं ' प्रसिद्धम्-प्रख्यातम् , सिद्धं -प्रमाणप्रतिष्ठितम् , 'सिद्धवरसासणं' सिद्धवरशासनम्-सिद्धानां-निष्ठितार्थानां वरशासन-प्रधानाज्ञानारूपम् , ' इणं' इदम् ' आघवियं' आख्यातं सर्वतो भावेन कथितम् , 'सुदेसियं' सुदेशितम्=सदेवमनुजासुरायां परिषदि मुष्ट्रपदिष्टं 'पसत्थं के अनुसार ही पालते हैं । ( एवं ) इस प्रकार उक्त रूप यह संवर द्वार (णायमुणिणा) प्रसिद्ध क्षत्रिय वंश में उत्पन्न हुए मुनि (भगवया) भगवान महावीर ने (पण्णवियं) प्रज्ञापित किया है-शिष्यों के लिये सामान्यरूप से कहा है। (परूवियं) प्ररूपित किया है-भेदानुभेद प्रदर्शन पूर्वक कथित किया है। इसलिये यह (पसिद्ध) प्रसिद्ध है-आचा
र्यादिकी परंपरा से इसका पालन करना इसीरूप में चला आ रहा है। सथा (सिद्ध) सिद्ध है-इसमें किसी भी प्रमाण से बाधा नहीं आती है अतः प्रमाणप्रतिष्ठित है। तथा (सिद्धवरसोसणमिणं ) जो सिद्ध हो चुके हैं-कृतकृत्य बन चुके हैं-उनका यह वर शाशन रूप है सो इसी को (आवियं ) प्रभु महावीर ने कहा है। और (सुदेसियं) इसका उपदेश उन्हों ने देव, मनुज एवं असुरों सहित परिषदा में अच्छी तरह दिया है । (पसत्थं ) यह प्रथम संवर द्वार समस्त प्राणियों का हितकारक होने से मंगलमय है। (पढमं संवरदारं समत्तं ) इस तरह का
क्यन प्रमाणे पाणे छ, “एवं" मा प्रमाणे प्रमाणना २१३५ ते स'१२६२ "णायमुणिणा'' प्रसिद्ध क्षत्रिय शमा उत्पन्न थयेस मुनि “भगवया" लगवान महावीरे “ पण्णवियं " ज्ञापित ४२ छ-शिष्याने माटे सामान्य ३५ ४युं छे “ परूवियं " ५३पित ४२६ छ-महानुले मतापीने ४७ छे. तेथी ते "पसिद्धं " प्रसिद्ध छ-मायायाहिनी ५२५२॥ २२१ शते तेनु ासन ४२वानुं यायु मावे छ मे सिद्ध " सिद्ध थये थे-तेमां 5 પ્રમાણુથી બાધા (મુશ્કેલી) આવતી નથી તેથી તે પ્રમાણપ્રતિષ્ઠિત છે. તથા " सिद्धवरसासणमिणं " रे सिद्ध 45 गयां छे, कृतकृत्य मनी गयो छ-तेभर्नु ते श्रेष्ठ शासन ३५ छे ४।२४५ 3 ते “ आघवियं " मडावीर प्रभु ४३ छे. "सुदेसिय" तेनो पहेश तेभो हेव, भान५ भने असुरे। सहितनी परिषहोमा सारी रीते सापेक्ष छ. “ पसत्थ " . प्रथम पवार समस्त प्राgl. मान भाटे हितसाधडपाथी भागमय छे. “ पढम संवरदारं समत्तं " ।
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