________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रश्रव्याकरणसूत्र भिक्षेषणायां 'जुत्ते' युक्तः संलग्नः ' समुदाणे ऊग' सादानीय भिक्षार्थमनेकगृहेषु भ्रमित्या 'भिक्खाचरियं उंछ' भिक्षाचर्यामुच्छाम्-अल्पाल्पग्रहणरूपां भिक्षां. 'घेत्तूण' गृहीत्वा गुरुजनस्य 'पास' पाच-समीपं आगए ' समागतः गमणागमणाइयारपडिकमणपडिक्कंते । गमनागमनातिचारपतिक्रमणप्रतिक्रन्त := गमनागमनातिचाराणां प्रतिक्रमणेन ईपिथिकीप्रायश्चित्तेन प्रतिक्रान्तः-निवर्तितपापः, ' गुरुजणस्स' गुरुजनस्य ' ' गुरुसंदिट्ठस्स' गुरुसन्दिष्टस्य-गुरुणा नि. र्दिष्टस्य रत्नाधिकस्यान्यमुनेरन्तिके वा 'जहोवएस ' यथोपदेशम्-उपदेशानतिक्रमेण · निरझ्यारं ' निरतिचारं च ' आलोयणा दायणं च दाऊण' आलोचना दानं च दत्त्वा यथा यथा सिक्षा गृहीता तथा तथा सर्व समालोच्य · अप्पमत्ते' अप्रमत्तः-प्रमादवर्जितः 'पुणरवि' पुनरपि चागामिकाले 'अणेसणाए' अनेवगुण के योग से जो युक्त बना हुआ है वह विनयगुण संप्रयुक्त कहलाता है ऐसा (भिक्खू ) साधु (भिक्खेसणाए जुत्ते ) भिषणा में संलग्न होकर वह ( समुदाणेऊण ) भिक्षार्थ अनेक घरों में घूमें, और वहां से (भिक्खायरियं उंछं) अल्प अल्प रूप में भिक्षा (घेत्तण) ग्रहण करके फिर वह (गुरुजणस्स पास आगए ) अपने गुरुजन के पास में आवे । (गमणोगमणाइयारपडिक्कमणपडिकते आलोयण दायणंच दाऊण ): और वह गमनागमन के अतिचारों के प्रतिक्रमण से ईर्यापथिकी प्रायश्चित्त से प्रतिक्रान्न बने इस तरह निवर्तितपाप होकर वह (गुरुजणस्स ) गुरुजन के (वा) अथवा (गुरुसंदिट्टम्स ) गुरु से संदिष्ट
अन्य रत्न त्रयाधिक मुनि के (जहोवएस) उपदेश के अनुसार जहां २ से भिक्षा उसने ली है उस उस प्रकार से सबकी (निरहयारं) निरतिचार. आलोचना करे आलोचना करके (अप्पमत्ते) प्रमाद वर्जित, बना हुआ तथा छे ते विनयगुए) सप्रयुटत' उपाय छे. मेव! “ भिक्खु " साधु " भिक्खे सणाए जुत्ते" लिक्षानी मेषामा ' समुदाणेऊण" लिक्षाने भाटे भने घरे इरे, मने त्यांथी “ भिक्खायरिय " अ५ ८५ मात्रामा निशा 'घेत्तण अड) ४ीन ते “ गुरुजणस्स पास आगए" पोताना शुरुनानी पांसे भावे, " गमणागमणाइयारपडिक्कमणपडिकंतआकोयणवायणं य दाऊण” भने ते ગમનાગમનના અતિચારેને પ્રતિકમણ વડે ઈર્યાપથિકી પ્રાયશ્ચિત્તથી પ્રતિકાન્ત थाय अने से शत पानी निवृत्त थन ते "गुरुजणस्स " शुरुनने "वा" अथवा “गुरुसंदिगुस्स" शुरुका निटि अन्य २नत्रयधारी भुनिनी “जहोवएसं" ઉપદેશ પ્રમાણે જ્યાં જ્યાંથી તેણે ભિક્ષા મેળવી હોય તે તે પ્રકારે તે સૌની "निरइयार " निरतियार मालोयना ४२. मासोयना धरीने " अप्पमत्ते"
For Private And Personal Use Only