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सुदर्शिनी टीका अ०१ सू०६ भावनास्वरूपनिरूपणम्
नावज्ञातव्या भवन्ति, मुनिः प्राणि माणसंरक्षणपरत्वातान्नावज्ञा विषयीकरोतीति भावः, एवमग्रेऽपि सर्वत्र वाक्यरचना कायौ । 'न निदियच्या ' न निन्दितव्या भवन्ति-परपीडावर्जनपरत्वात् , ' न गरहियव्या' न गर्हितव्याः भवन्ति-- लोकसमक्षं दोषोद्घाटनपूर्वकं गर्दा विषयभूता न भवन्तीत्यर्थः, तथा-'न हिंसियया' न हिंसितव्याः-पादाक्रमणादिना न हन्तव्याः, भवन्ति, एवं 'न छिदि. यव्या' न छेत्तव्याः वङ्गादिना, 'न भिदियमान भेगष्याः - कुन्तादिना, 'न वहेयव्या' न व्यथनीयाः पीडोत्पादनादिना भवन्ति । तथा – 'न भय दुक्खं च लब्भा पावेउं' न भयं दुखं च लभ्याः पापयितुम् , दुःखं भयं च पापयितुं योग्या न भवन्तीति भावः । एवम् अनेन प्रकारेण 'इरिया समिइजोगेण ' ईर्यासमितियोगेन ' भाविओ' भाविनो-चासितो भवति 'अंतरप्पा' अन्तरात्मा =जीवः, सावितात्मा-भवतीत्यर्थः, कीदृशो भवति ? इत्याह-'असवलमसंकिलिहनिव्वणचरित्तभावणाए' अशवलासंक्लिष्ट निणचारित्रभावनयाः, अशवला= यब्वा) निंदा के विषयभूतनहीं बनते हैं। (न गरहिमच्या ) लोगों के समक्ष दोपोद्घाटन पूर्वक गर्दा के विषयभून नहीं बनते हैं। (न हिलियब्धा) पादादि द्वारा आक्रमिक होकर हिंसा के विषयभूत नहीं बनते हैं, (न छिदियवा ) छेदन करने के विषयभूत नहीं बनते है, ( न भिदियव्वा ) भेदन करने के विषयभूय नहीं बनते हैं। ( न-वहेयन्या) पीडो त्पादनादि द्वारा व्यथा कष्ट पहूँचाने के योग्य नहीं बनते हैं। (न भयं दुक्खं च किंचि लम्मा पावेउ) और न किसी भी तरह से भय और दुःख को पास कराने के योग्य बनते हैं। ( एवं ) इस प्रकार (ईरियासमियजोगेण ) ईर्या समिति के योग से (भाविभो अंतरप्पा) वासित हुआ अन्तरालमा-जीव-भावितात्मा कहलाता है और यह( असवलमसंकिलिट्ठनिव्वण चरित्त भावशाए ) अशवल-मलिनता रहित समस्त on “ण हीलयव्वा' मज्ञान विषाभूत जनता नथी " न निदियत्वा' निहाना विषयभूत मानना नथी, “ न गरहियवा" सोनी समक्ष होषोद्धाटन गहना विपभूत मनता नथी. “न हिसियख्वा" पाहत
मित ने सान! विषयभूत मनता नथी, " न छिदियवा" छन ४२वाना विषयभूत न। नधी, “न भिदियव्वा " मेन १२वान विषयामत मनता नथी, “न वहेयव्या" पीst Gपा मावि व्यथा पायावाने योज्य मनता नथी. "न भयं दुक्खं च किचिलब्भा पावेउ” भने ४ ५५५ असारे लय भने प्राप्त पाने योग्य जनता नथी. — एवं" मा सारे "ईरियासमियजोगेण" ध्यासमितिना योगथी "भाविओ अंतरप्पा" यात मात्मा-०१-मावितात्मा अपाय छ भने ते “असबलमसंकिलिनिवणचरित.
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