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सुदर्शिनी टीकाअ० १ ० ५ अहिंसापालककर्त्तव्यनिरूपणम् ६०५ नानुजानाति ३, न पचति ४, न पाचयति ५, पचन्तं नानुनानाति ६, न क्रीणाति ७, न क्रापयति ७, क्रीणन्तं नानुजानाति ९, इत्येता नवकोटयः, आभिः 'परिसुद्धं ' परिशुद्धं, तथा-'दसहिं य दोसेहिं' दशभिश्च दोषैः-शङ्कितादिदशदोषैः 'विप्पमुक्कं' विषमुक्तम्, 'उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं' उद्गमोत्पादनषणाशुद्धं-आधाकर्मादयः पोडष उद्गमदोषाः, धाच्यादयश्च पोडश उत्पादनादोषाः, तद्रूपाया एषणा=गवेषणा, तया शुद्धम् , तथा--' वगयचुयचइयचत्तदेहं च' व्यपगतच्युतत्याजितत्यक्तदेहं च-तत्र व्यपगताः स्वयं पृथग्भूता आगन्तुका पियी लिकादयः, च्युताः मृताः स्वतः परतोवा दातव्यबस्त्वाश्रिताः उसने साधु के निमित्त दूसरों से हिंसा कराई हो २, और न साधु के निमित्त हिंमा करने वाले की अनुमोदना की गई हो ३ । तथा साधु के निमित्त जो स्वयं न पकाया हो ?, दूसरों से नहीं पकवाया गया हो २
और न जिसमें पकाने वाले की अनुमोदना की गई हो ३, तथा साधु के निमित्त जो पैसा देकर न खरीदा गया हो १, न दूसरों से खरीदवाया गया हो २ और न जिसमें खरीदने वाले की अनुमोदना की गई हो ३ । इस प्रकार की इन नव कोटियो से विशुद्ध आहार आदि की गवेषणा साधु को करनी चाहिये । (दसहिय दोसेहिं विप्पभुकं ) जो आहार शंकिन आदि दश दोषों से परि वर्जित हो (उग्गम उपायणेमणासुद्धं) उद्गम, उत्पादनरूप एषणा-गवेषणा से शुद्ध हो-आधाकर्म आदि सोलह उद्गमदोष हैं, धात्री आदि सोलह उत्सदना दोषों हैं। इन बत्तीस दोषों से जो रहित हो तथा (ववगयचुयचइयचत्तदेहं ) ( व्यपगत ) जिस કરાવી ન હોય, કે આધુને નિમિત્તે હિંસા કરવાની અનુદના થઈ ન હોય, તથા સાધુને નિમિત્તે જે તેણે જાતે બનાવ્યું ન હોય, બીજા પાસે બનાવરાવ્યું ન હોય, કે જેને પકવવાની અનુમોદના અપાઈ ન હોય તથા સાધુને નિમિત્તે જે પૈસા આપીને ખરીદ કર્યું ન હોય, કે બીજા પાસે ખરીદ કરાવાયું ન હોય, કે ખરીદનારને ખરીદવાની અનુમોદના કરાઈ ન હોય, એ રીતે નવા ४ारे विशुद्ध मा.२ माहिनी साधु गवेष९४१ २वी . ( दसहिय दोसेहि विप्पमुकं) 2 241७२ शति माह इस होषाथी २डित डाय, (उपगमउ पायणे सणा. सुद्ध) दम, उत्पाहन॥३५ मेष गवेषणाथी शुद्ध डाय,-माथाभ माह से ઉમે દોષ છે, ધાત્રી આદિ સોળ ઉત્પાદનો દેશ છે એ બત્રીસ થી જે રહિત हाय, तथा (ववगयचुयचइयचत्तदेह) (व्यात) माडामाथी ही मालि 94 ते २१ २६ ॥ जय, तथा (चुय) । २१५ चव गया
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