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सुदर्शिनी टीका अ० १ सू०२ प्रथमसंघरद्वारनिरूपणम् स्थानम् , ' गई' गतिः गम्यते-मोक्षार्थिभिराश्रीयते इति गतिः= प्राप्यस्थानं तथा-' पइट्टा' प्रतिष्ठा प्रतिष्ठन्ते-आसते यस्यां सर्वे गुणाः सा प्रतिष्ठा-सर्वगुणानामाधारस्वरूपा। साम्प्रतमहिंसायाः गुणनिष्पन्नानि षष्टिनामान्याह 'निवाणं' इत्यादि-निव्याणं ' निणि मोक्षः, तद्वेतुत्वात् १, 'निव्वुई 'निवृतिः स्वास्थ्यम्-कर्मव्याधिवर्जितत्वात् २, ' समाही ' समाधिः समता, समभावहेतुत्वात् ३, 'संती' शान्तिः द्रोहवर्जितत्वात् ४, ‘कित्ती' कीर्तिः यशः तद्धेतुत्वात् ५, को यह एक उत्तम आश्रय स्थान रूप है । तथा ( गई ) जो मोक्ष के अभिलाशी जीव हैं वे इसका आश्रय करते हैं इसलिये उनकी अपेक्षा यह गतिरूप है । तथा ( पइट्ठा ) संसार में जितने भी सद्गुण हैं उन सघ की प्रतिष्ठा-आधारभूत यही एक अहिंसा है, इसके अभाव में अन्य विद्यमान सद्गुणों की प्रतिष्ठा-कीमत-नहीं होती है। अब सूत्रकार इस अहिंसा भगवती के गुण-निध्पन्न साठ नामों को कहते हैं। उनमें पहिला नाम (निव्वाणं) निर्वाण-मोक्ष है । क्यों कि यह उसकी हेतुभून होती है १ । दूसरा नाम इसका (निवुई ) निवृत्ति है, निवृत्ति शब्द का अर्थ स्वास्थ्य है- कर्मों के आत्यंतिक अभाव होने से ही जीवों को प्राप्त होता है २ । अहिंसा का तीसरा नाम (समाही) समाधि है, समाधि का अर्थ समता है, यह अहिंसा समभाव की कारण होती है इसलिये कारण में कार्य के उपचार से इसे स्वयं समाधिरूप कह दिया है ३ । अहिंसा का चौथा नाम ( संति) शान्ति है, क्यों कि जहां द्रोह भाटते माश्रयस्थान३५ छ. तथा “ गई ” भाक्षना मलिषी रे જીવે છે તેઓ તેને આશ્રય લે છે, તેથી તેમની અપેક્ષાએ તે ગતિરૂપ છે, तथा " पइट्रा" संसारमा टसा सशुशु छ त मयाना साधा२ ३५ 21 से અહિંસા જ છે, તેના અભાવે બીજાં વિદ્યમાન સદ્દગુણોની કઈ પ્રતિષ્ઠા-કિંમત થતી નથી. હવે સૂત્રકાર આ અહિંસા ભગવતીન ગુણ પ્રતિપાદિત સાઠ નામે मतावे. तेभा प नाम " निव्वाणं" नि -मोक्ष छ. ४।२५ ते तेना ४॥२४३५ य छे. (१) तेनु भानु नाम “ निव्वुई " न छे, नियति શબ્દનો અર્થ સ્વાથ્ય થાય છે-કર્મોને અત્યંત અભાવ હોવાથી તે જીવેને थाय छे. (२) मडिसानुं त्रीन्नु नाम " समाही " समाधि छ, समाधिना मथ સમતા છે, આ અહિસા સમભાવનું કારણ હોય છે તેથી કારણમાં કાર્યના ઉપચારથી तेने २१य समाधि३५ ४उवाभा मावेश छे. (3) मङिसार्नु यो नाम "संती" શાન્તિ છે, કારણ કે જ્યાં દ્રોહને અભાવ હોય છે ત્યાંજ શાંત હોય છે. અહિप्र० ७१
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