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प्रश्नव्याकरणसूत्रे १९, रिद्धी' ऋद्धिः, लक्ष्मीहेतुत्वात् २०, 'विद्धी' वृद्धिः, तीर्थङ्करादिपुण्यप्रकृतिपुञ्जसंपादकत्वात् २१, 'ठिई स्थितिः-साद्यपर्यवसितमोक्षस्थितिसम्पादकत्यात् २२, 'पुट्टी' पुष्टिः-पुण्यपुष्टिकारकत्वात् २३, 'नंदा' नन्दा-नन्दयति आनन्दयतीति नन्दा, स्वर्गापवर्गसुखप्रापकत्वात् २४, ‘भद्दा' भद्रा भन्दते-कल्याणं करोतीति भद्रा २५, 'विसुद्धी ' विशुद्धिः-पापमलविशोधकत्वात् २६, 'लद्धी' लब्धिः केवलज्ञानकेवलदर्शनादि लब्धहेतुत्वात् २७, 'विसिदिट्ठी' विशिष्टदृष्टिः प्रधानदर्शनमतमित्यर्थः, उक्तं चकी जनक होने से इसका नाम ( समिद्धी) समृद्धि है १९. । लक्ष्मी की हेतुभूत होने से इसका नाम (रिद्धी) ऋद्धि है २० । इसके प्रभाव से तीर्थकर आदि पुण्य प्रकृतियों का जीवों को बन्ध होता है इसलिये इसका नाम ( विद्वि) वृद्धि है २१ । इसके आचरण करने से मोक्ष में प्राप्त हुए जीवों की स्थिति आदि अनन्त होती है इसलिये इसका नाम (ठिई) स्थिति है २२ । पुण्य की पुष्टि का कारण होने से इसका नाम (पुट्ठी ) पुष्टि है २३ । स्वर्ग और मोक्षके सुख जीवों को इसकी कृपा से प्राप्त होते हैं अतः वे उन सुखों की प्राप्ति से वहां आनन्द करते हैं इसलिये इसका नाम ( नंदा) नन्दा है २४ । यह जीवों का कल्याण कराती है इसलिये इसका नाम (भद्दा) है २५ । पापमल का इससे विशोधन होता है इसलिये इसका नाम (विसुद्धी) विशुद्धी है २६ । केवलज्ञान, केवलदर्शन, आदि लब्धियां इसके ही प्रभाव से होती हैं, इसलिये इसका नाम (लद्धी ) लब्धि है २७ । (विसिदिंडी) अहिंसा तेनु नाम “ समिद्धी" समृद्धि छे. (16) सक्ष्मीना ४१२५३५ वायी तेनु नाम “रिद्धी" ऋद्धि छे. (२०) तेना प्रमाथी ताय ४२ माहि पुष्यप्रकृतियोनी वोने ५५ थाय छे तेथी तेनु नाम “ विद्धी ' (२१) तेनi माय२. ણથી મેક્ષ પ્રાપ્ત કરેલ જીવોની સ્થિતિ આદિ અનંત થાય છે, તેથી તેનું नाम “ ठिई " स्थिति छे (२२) पुश्यनी पुटिनु ते ॥२९५ पाथी तेनु नाम "पुट्ठी" पुष्टि छ. (२३) तेनी पाथी याने २१॥ मने भाक्षनां सुनो પ્રાપ્ત થાય છે, તેથી તે સુખની પ્રાપ્તિથી તેઓ ત્યાં આનંદ કરે છે. તે કારણે तेनु नाम “ नंदा " छे (२४) ते ७वानु ४८या ४२वे छे. तेथी तेनु नाम " भद्दा" मा . (२५) ५५भनी तेनाथी विशुद्धि थाय छ, तथा तेनु नाम “विसुद्धी" विशुद्धि छ. (२६) अवज्ञान, मा सन्धिमा तेना प्रमाथी १ योने पास थाय छ, तेथी तेनु नाम “लद्धी " सन्धि छ. (२७) " विसिद्ध दिट्ठी" अहिंसा प्रधान श°न छ तेथी तेनु नाम
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