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प्रश्नव्याकरणसूत्रे लोकस्य 'दीवो' द्वीपो भवति, अयं भावः-संयोगवियोगचिन्तासन्तानवितान तरङ्गायमाणमोहमहावर्तपत कषायश्चापदकथितमध्यमानगात्राणामत्राणानां प्राणानामियमहिंसाऽऽश्वासस्थानरूपो द्वीपो भवति, तथा-'ताणं' त्राणम् , आपट्यो रक्षणात्त्राणस्वरूपाऽस्ति । तथा- सरण' शरणम्-विविदविपदव्याकुलानामाश्रयप्रथम संवर द्वार के निरूपण के लिये सूत्र कहते हैं-'तत्थ पढमं' इत्यादि।
टीकार्थ-(तत्थ) उन पांच संवरद्वारों में से ( पढमं अहिंसा) पहिला संवरद्वार अहिंसा है। (जा सा सदेवमणुयामुरस्स लोगस्स. दीवो भवइ ) यह सुप्रसिद्ध अहिंसा देवलोक, मनुष्यलोक और असुरलोक के लिये एक द्वीप जैसी है । इसका तात्पर्य यह है कि संयोग और वियोग की सन्तानपरंपरारूप तरङ्गो से यह मोहमहावर्तरूप गत कि जिसमें समस्त संसारी जीव सर्वथा मग्न हो रहे हैं, व्याप्त हो रहा है उसमें पड़े हुए इन संसारी जीवों को कषायरूप श्वापद-हिंसक जानवर रातदिन दुःखित करते रहते हैं और उनके शरीर को मथते रहते हैं। वहां उनकी रक्षा करने वाला कोई नहीं है । इस तरह अशरणभूत हुए इन प्राणीयों की रक्षा करने वाली यह एक अहिंसा ही है। अतः यह अहिंसा उनके लिये आश्वासन के स्थानरूप एक द्वीप के जैसी है। तथा ( ताणं ) जीवों की यह आपत्ति विपत्ति से रक्षा करती है इसलिये यह त्राणरूप है । तथा ( सरणं ) अनेक विपदाओं से घिरे हुए जीवों स१२।२i नि३५४ने भाटे सूत्र ४ छ-" तत्थ पढमं” त्यादि ___ -"तत्थ" ते पांच सवारीमाथी पढम अहिंसा " पर स१२।२ यडिंसा छे. “जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स दीवो भवइ " ते सुप्रसिद्ध અહિંસા વિલેક, મનુષ્યલોક, અને અસુરલેકને માટે એક દ્વીપ જેવી છે. તેને ભાવાર્થ એ છે કે સંગ અને વિયાગરૂપ સંતાન પરંપરા રૂપ મેજ વડે આ મોહ મહાવર્તરૂપ ખાઈ કે જેમાં સર્વે સંસારી જીવે સંપૂર્ણ રીતે મગ્ન થઈ ગયેલા છે, ડૂબી ગયા છે, તે સંસારી જીવોને કષાયરૂપ શ્વાપદ હિંસક પશ નિશદિન દુઃખી કરે છે અને તેમનાં શરીરને વાવ્યા કરે છે ત્યાં તેમનું રક્ષણ કરનાર કેઈ નથી. આ રીતે નિરાધાર એવાં તે પ્રાણીઓની રક્ષા કરનાર આ એક અહિંસા જ છે તેથી આ અહિંસા તેમને માટે આશ્રય રથાનરૂપ मे द्वीप समान छे. तथा “ ताणं" ते वार्नु मापत्ति-विपत्ति सामे रक्षण ४२. तेथी त ३५ छ. तथा “ सरणं " मने विपोथी धेशयेता वाने
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