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प्रश्नव्याकरणसूत्रे पञ्चविधा ज्योतिषिक देवाः ३ । अथ वैमानिकानाह-' उवरिचरा' उपरिचराःतिर्यग्लोकस्योपरिवर्तिनः, : उडुलोगवाषिणो' ऊर्ध्वलोकवासिनः 'वेमाणिया य देवा' वमानिकाश्च देवा ' दुविहा' द्विविधाः द्विप्रकाराः, कल्पोपपन्न कल्पातीत भेदात् । तत्र-कल्पोपपना द्वादशधा, तानाह- सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिंदबंभलोग-लंतग-महासक-सहस्सार-आगय-पाणय-आरण-च्चुया' सौधर्मेशान सनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकलान्तकमहाशुक्र-सहस्रारानतप्राणतारणाच्युताः, एते ' कप्पवरविमाणवासिणो ' कल्पवरविमानवासिनः-कल्पोपपन्नाः, 'सुरगणा' सुरगणाः । अथ कल्पातीतानाह-'गेवेज्जा' ग्रैवेयकाः ' अणुत्तरा' अनुत्तरा
उनका प्रकाश भी एकसा स्थिर ही रहता है। इस प्रकार यह पांच प्रकार के ज्योतिषिक देवों के विषय में भावार्थ रूप से यत् किञ्चित् कथन किया हैं । अब सूत्रकार वैमानिक देवों के विषय में कहते हैं-( उवरिचिरा उड़लोगवासी वैमाणिया देवा दुविहा) तिर्यग्लोक हैं । ये वैमानिक के कार जो अलोक है उसमें ये देव रहते हैं । इनका नाम वैमानिक देव कल्पोपपन्न और कल्पातीत के भेद से दो प्रकार के होते हैं। इनमें कल्पोपपन्न बारह प्रकार के हैं, वे ये हैं-(सोहम्मी-साण-सणंकुमारमाहिद-भलोग-लंतग-महाप्लुक्क- सहस्सार-आणय-पाणय-आरण-s
चुया ) सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत । इन (कप्पवरविविमाणवासिणो सुरगणा ) कल्पवरविमानों में रहनेवाले:सुरगण कल्पापपन्न कहलाते हैं। (गेवेज्जा अणुत्तरा य दुविहा कप्पातीया विमाण
જ સ્થિર રહે છે. આ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારના તિષિક દેવને વિષે ભાવાર્થ રૂપે થોડું કથન કરવામાં આવ્યું છે, હવે સૂત્રકાર વૈમાનિક દેવ વિષે કહે છે" उवरिचरा उड्डलोगवासी बेमाणियादेवा दुविहा" तियानी 3५२ २ . લેક છે તેમાં તે દે રહે છે, અને તેમને વૈમાનિક કહે છે. તે વૈમાનિક દેના બે ભેદ છે-કપાતીત અને કલ્પપપન્ન તેમાંના કપપન્ન નીચે પ્રમાણે બાર प्रारना -" सोहम्मी-साण-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोग-लंतग-महासुक-सहस्सार -आणय-पारण-आरणऽच्चुया" सौधमः, शान, सनभा२, भाडेन्द्र, प्रमा and, मांशु, सखार, मानत, प्राणुत, २०२५५ अश्युत. “ कम्पवरविमाणवासिणो सुरगणा” ४३५१२ विमानामा २सेना२ सुरगाने ४८पोपपन्न ४ . “गेवेज्जा अणुत्तरा य दुविहा कल्पातीया विमाणवासी महड्रिढया उत्तमा
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