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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
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स्ताः=व्याप्ताः, तथा ' अत्ताण अणिग्गहिया' आत्मनाऽनिगृहीताः = अवशीकृतास्मानः ' करेंति' कुर्वन्ति । किं कुर्वन्ति ? इत्याह- ' कोहमाणमायालो मे ' । क्रोधमानमायालोभान, कीदृशान् ? 'अकित्तणिज्जे' अकीर्तनियान्- अवाच्यान् । तथा ' परिग्गहे चेव ' परिग्रहे एव ' हुंति भवन्ति, 'नियमा नियमात्निश्वयतः कानि कानि भवन्ति ? त्याह 'सल्ला' शल्यानि = मायानिदानमिथ्यादर्शनरूपाणि त्रीणि, ' दण्डाय दण्डाव - दुष्प्रणिहितमनोवाक्कायरूपाः, ' गारवाय ' गौरवाणि च ऋद्धिरससातरूपाणि च ' कसाय सण्णा य ' कषाय संज्ञाथ, कषायाः = प्रतिताः, संज्ञाः = आहार मैथुनभयपरिग्रहादयः, तथा - ' कामगुणअहगा य' कामगुणाश्रवाश्च कामगुणाः शब्दादयस्त एव आश्रवाः - आश्रवद्वाराणि इंदिय ' इन्द्रियाणि = असंवृत्तानि इन्द्रियाणि 'लेसाओ' लेश्या: = अप्रशस्ता
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अधिक आसक्ति, लोभ-लालच, इन सब से घिरे रहते हैं ( अत्ताणा अणिग्गहिया ) इन की आत्मा इनके वश में नहीं हो पाती है। और इस तरह ये परिग्रह की ममता में फँसकर (कोहमाणमायालो भे) क्रोध, मान माया और लोभ जैसी कषायों को कि जो (अकिन्तणिज्जे ) शब्दों से मकट नहीं की जा सकती हैं ( करेंति) करते रहते हैं । (परिग्गहे व हुति नियमा सल्ला, दंडा य गार वा य कसाय सण्णा य कामगुणअण्हगा य इंदिय साओ सयगसंपओगा सचित्ताचित्तमी सगाई दव्वाइं अनंतगाई परिधेतुं इच्छति इस परिग्रह में ही नियम से माया, मिथ्यादर्शन और निदान, ये तीन शल्य रहते हैं । मन, वचन और काय की दुष्टतारूप व्यापार रहता है । ऋद्धि रम सातरूप गौरव रहता है। अनंताबंधी आदि कषायें, आहार, भय, मैथुन, और परिग्रह ये चार संज्ञाऐं,
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बोल, मे मधाथी घेरायेल रहे छे. " अत्ताण अणिग्गहिया " तेभनुं भन तेभना अणूभां होतुं नथी, मने या रीते परिभ्रडुनी भमतामा इसाधने " कोइमाण मायालो " ोध, भान, माया भने बोल भेवा उषायो ने "अकित्तणिज्जे " शो द्वारा प्रगटरी शाता नथी. " करें ति " तेभनुं सेवन उरे छे. " परिभाव हुति नियमा सला, दंडाय गारवा य कसाय वण्णाय कामगुणअण्ड. गाय इंदियलेसाओ सयणसंपओगा सचित्ताचित्तमीसगाई दव्वाई अणंतगाई परिघेतुं इच्छति આ પરિગ્રહમાં જ નિયમથી જ માયા, મિથ્યાદર્શન અને નિદાન, એ ત્રણ શક્ય રહે છે. મન, વચન અને કાયની દુષ્ટતારૂપ પ્રવૃત્તિ રહે છે. ઋદ્ધિ રસ સાતરૂપ ગૌરવ રહે છે. અનંતાનુબંધી આદિકષાયા, આહાર લય, મૈથુન અને પરિગ્રહ એ ચાર સ'જ્ઞાઓ, શબ્દાદિ વિષયરૂપ આસ્રવ,
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