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सुदर्शिनी टीका २०५ सू०३ यथा ये परिग्रहं कुर्वन्ति तन्निरूपणम्
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पनीय कनकवर्ण: = तप्तं यत्तपनीयकनक = तपनीयसुवर्ण तस्य वर्ण व वर्णोयस्य स - तथोक्तः - अग्नौ परितापनेन सुवर्णस्य यादृशो वर्गों भवति, तादृश वर्ण युक्त इत्यर्थः, आर्षत्वात्सूत्रे बहुवचनम् । तथा एभ्य इतरे ' जे गहा ' ये ग्रहाः सम्पतिकाल - प्रसिद्धा नेपच्युहर्षलादय:, ' जोइसम्म ' ज्यातिषि - ज्योतिश्चक्रे 'चारं चरंति' - परिभ्राम्यन्ति, ते ग्रहाः, तथा 'केउ य' केतवश्व-ज्योतिष्क विशेषा ये जगतः शुभाशुभनिमित्तमवलम्थ्योदयं प्राप्नुवति 'पुंछडियातारा' 'चोटीवाला तारा' इत्यादि नाम्ना भाषामसिद्धाः कीदृशा एते ? इत्याह ' गइरइया ' गतिरतिका:गमनशीला एकराशितोऽन्यराशौ गमनस्वभावाः । एते चन्द्रसूर्यग्रहात्रिविधाज्योतिष्कदेवा उक्ताः । तथा ' अट्ठावीसविहाय ' अष्टाविंशतिविधाच 'नक्खत्तदेवगणा ' नक्षत्रदेवगणा, कीदृशाः १ इत्याह - तथा 'नाणासंठाणसंठियाओय' और अंगारक - मंगल ये भेद हैं । यहअंगारक (तत्ततवणिज्जकणगवण्णा) तप्ततपनीय - तपाये हुए सुवर्ण के वर्ण के जैसा वर्ण वाला है। अर्थात्अग्नि में तपाने से सुवर्ण का जैसा रंग होता है वैसा ही इसका रंग है। तथा (जे य गहा जो हसियम्मि चारं चरंति ) इनसे अतिरिक्त जो इस समय में प्रसिद्ध नेपच्युल हर्षल आदि ग्रह हैं कि जो ज्योतिश्चक्र में परिभ्रमण करते हैं वे ग्रह तथा - ( केऊ य ) केतु ग्रह जो जगत के शुभ अशुभ निमित्त को लेकर उदित होता है और जिसे " पूंछडियातारा " चोटीवाला तारा" इत्यादि नाम से लोग कहा करते हैं ये सब ही ( गइरइया) गमनशील है - एक राशि से अन्यराशि पर गमन करने के स्वभाववाले हैं। ये उक्त ( तिविहा ) तीन प्रकार के चंद्र, सूर्य, ग्रहरूप ज्योतिषी देव तथा ( अट्ठावीसह विहा) अट्ठाईस प्रकार के ( नक्खत्त देवगणा ) नक्षत्र ( णाणासंठाणसंठियाओ) नाना
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रगाय રાહુ, ધૂમકેતુ, બુધ અને અંગારક-મંગળ એ પ્રકાશ છે. તે અગા२४ - मंगण " तत्ततवणिज्जकणगवण्णा ” તપાવેલા સુવર્ણના રંગ જેવા વણુवाणो हे तथा " जे य गहा जोइसियम्मि चार चरति" ते सिवायना डासना સમયમાં પ્રસિદ્ધ નેપચ્યુન, હર્ષલ આદિ ગ્રહેા કે જે જયાતિશ્ચક્રમાં પરિભ્રમણ ५रे छे ते श्रहे। तथा “ केऊय " तुथो ? भगतना शुभ अशुल निभित्त દર્શાવવાને ઉગે છે અને જેને પૂછડિયા તારાને નામે ઓળખે છે, એ બધા જ
गहरइया " गमनशील छे-से राशिभांथी अन्य राशिभां गंभन उखाना स्वभाववाजा छे. ते उपरोक्त " तिविहा " नशु प्रहारना यन्द्र, सूर्य मने ગ્રહરૂપ ચૈાતિથી દેવ, તથા asar ’અડચાવીસ પ્રકારના 66 नक्खत नक्षत्र, " णाणासं ठाणसंठियाओ " विविध प्रारना સસ્થાનામાં
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देवगणा ”
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