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प्रश्नव्याकरणसूत्रे शानिनस्तावपादद्वयरूपाणि 'धणियं ' अत्ययं बद्धानि येषां ते तथा दबद्धहस्तपादाः, 'पन्चयकड गापाच्चंते ' पर्वतकटकात् प्रमुच्यन्ते-गिरिशिखरानिपात्यन्तेऽत एव 'दूरपातबहुविसमपत्थरसहा' दूरघातबहुविषमप्रस्तरसहाः = बहुविघमेषु= अत्यन्तविषमेषु निम्नोन्मतेषु मस्तरेषु-पापाणेषु यो दूरात् पातः निपतनं तं सहन्ते ये ते तथा भवन्ति । ' अण्णेय ' अन्ये च ‘गयचलणमलगनिम्मदिया कीरो' गजचरणमलननिर्मर्दिताः, तत्र – गजचरणेन-इस्तिपादेन यन्मलनंमर्दनं तेन निर्मर्दिताः सम्मर्दितशरीराः क्रियन्ते । तथा ' पावकारी 'पापकारिणः
फिर वे अन्तग्राहो चोर जिल फल को पाते हैं-' केइ' इत्यादि ।
टीकार्थ-(क) किसनेक अदत्तग्राही मनुष्य ( कलुगाइ विलयमाणा) महाकष्टोको भोगनेके कारण करुणवचनों से विलाप करते हुए (रुक्खसा
हिं) वृक्षोंकी शाखाओं में (उल्लं पिज्जति) रस्सी आदि से बांधकर लटका दिये जाते हैं । तथा ( अवरे ) कितनेक अदत्तग्राही मनुष्य ( चउरंग धणियपद्धा ) दोनों हाथ पैर खूब जकड़ कर बांधकर (पव्ययकडगा ) पर्वत की चोटी से ( पनुचते ) गिरा दिये जाते हैं, अतः वे (दूरपातवि. समपत्थरसहा) वहां से गिर कर नीचे ऊँचे पत्थरों पर बहुत दूरतक गुडकते आने के कारण शरीर में बहुत बुरी तरह छुल जाते हैं। इस तरह के महाभयंकर वेदना को सहन करते हैं । ( अण्णे य) कितनेक अदत्तपाही चोर ( गयचलगमलणनिमदिया) हाथी के पैरों के तले डाल कर मर्दित (कीरति ) करवाये जाते हैं। इस तरह उनके शरीर
તે અદત્તાગ્રાહી ચેર જે ફળ પામે છે તેનું વધું વર્ણન કરે છે– "के" त्या
साथ - "केई' या महत्तयाही भाणुसाने 'कलुगाइविलवमाणा" भडी४ मावाने ४०५१ क्यनाथी पिता५ ४२॥ " रुक्खसालेहिं " योनी
जीमा ५२ " उल्लं बिज्जति" हो२९. माहिथी. piधीने टावी हेवाभा यावे छ. तथा “ अवरे" 23 महत्ताडी माणसाने “चउरंगधणियबद्धा " भन्ने हाथ ५गने भरपूत मांधी “पव्वकडगा" पतनी यथा “पमुच्चंते" नीय सेमी वामां मारेछ, तेथी " दूरपातविसमपत्थरसहा" त्यांथी या નીચા પથ્થર ગબડાવાને કારણે તેમના શરીર ખરાબ રીતે છોલાઈ જાય છે सन ते ते सो मति मय४२ वेदना सहन ४२ छ. तथा “ अण्णेय "
सा महत्ताही याराने “गयचलणमलणनिमदिया, थान॥ ५नीय नाभान “ कीरति " ४२११ामां आवे छे. मेरीत थाना ५नीय ४५
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