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प्रश्नव्याकरणसूत्रे ऽऽहारपरिपाकाः ‘सउणिपोसा' शकुनिपोसाः-शकुनेरिव-पक्षिग इव पोसः= अपानस्थानं निरूपलेपतया येषां ते तथा, निरूपलेपगुदाशयाः, 'पिटुं तरोरुपरिगया ' पृष्ठान्न रोसारिगताः = पृष्ठं = पृष्ठदेशः, अन्तरे = पृष्ठोदरयोरन्तराले पावित्यर्थः उरू = जङ्घ च, इत्येते परिणताः = सुदृढा येषां ते तथा 'पउमुप्पलसरिसगंधसाससुरभिवयमा ' पोत्पलसदृशगन्धश्वाससुरभिवदनाः-तत्र - पद्मं = कमलम् उत्पलं :- नीलकमलं च तत्सदृशो गन्धो यस्य स तथाभूतो यः श्वासः तेन मुरभि सुगन्धयुक्तं वदनं-पुरवं येषां ते तथा 'अणुलोभवाउवेगा ' अनुलोभवायुवेगाः = अनुकूलशरीरोद्भववायुवेगवन्तः ' अबदाय निद्धकेसा ' अबदातस्निग्धकेशाः = अबदाताः कान्तियुक्ताः स्निग्धाः-चिक्कणाः केशाः रोमाणि येषां ते तथा, 'विग्गहियउण्णयकुच्छी ' वैग्रहिकोन्नतकुक्षयः । वैग्रहिको-शरीरानुरूपौ उन्नतौ-पुष्टौ कुक्षी-उदरदेशी येषां ते तथा शरीरानु। पपुष्टोदराः 'अमयरसफलाहारी ' अमृतरसफाहारिणः । अमृततुल्यरस होता है । ( सउणिपोसा) पक्षी की तरह इनका अपानस्थान मल के उपलेप से रहित होता है । (पिटुंतरोरुपरिणया ) इनके पृष्ट और उदर के अंतराल-पार्श्वभाग एवं जंघाएँ सुदृढ़ होती हैं, (पउम्मुप्पलसरिसर्गधसाससुरभिवयणा ) पद्म-कमल, उत्पल-नील कमल, इनके जैसे गंधवाला इनका श्वास होता है । उस श्वास से सुगंध युक्त इनका मुख होता है । ( अणुलोभवाउवेगा ) इनकी शारीरिक वायु का वेग इनके अनुकूल ही रहता है-प्रतिकूल नहीं। (अवदायनिद्धकोसा) इनके केश-रोम अवदात कान्तियुक्त एवं चिकने होते हैं ( विग्गहियउण्णयकुच्छी ) इनके पेट के दोनों आजु बाजु के भाग शरीर के अनुरूप ही पुष्ट रहते हैं । ( अमयरसफलाहारी ) ये अमृत के जैसे रसमा २ व निषि होय छे. " सउणिपोसा" पक्षीनी म तेमनी गुप्तमा भगथी भ२७॥या विनानो सोय छे. “ पिटुंतरोरुपरिणयो" तमनी पाई भने GERनी मनो तथा पासेना मा भने घास भरपून होय छे. “पउ. म्मुप्पलसरिस गंधसास सुरभिवयणा" ५-3भा, मने ५-
नीमा વધવાને તેમને શ્વાસ હોય છે. તે શ્વાસથી તેમનું મુખ સુગંધયુક્ત થાય છે. छ. "अणुलोमवाउवेगा" तमना शरीना वायुनो तेमने मनु । २९ छे-प्रतिष २तो नथी. " अवदायनिद्धकोसा" तेभन॥ शम महात-न्ति सुत भने मुसायम डोय छे. “ विगहियउण्णय कुच्छी " तेमना पटनी आY. माना न मा शरी२ने अनु३५ २४ पुष्ट २ . " अमय'सफलाहारी"
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