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सुदर्शिनी टीका अ०४ सू० १२. युगलिनीस्वरूपनिरूपणम्
४७३ अकोसायंतपउमगंभीर विगडना भीओ' गङ्गावर्तकदक्षिणावर्ततरङ्गमङ्गुर - रवि - करणतरुणबोधितविकोशायमानएमगम्भीरविकटनाभिकाः, तत्र गङ्गावर्तकः गङ्गानद्याजलभ्रमः, स च दक्षिणावर्तः तरङ्गभङ्गुरः- तरङ्गैः भगुरः वक्रश्च, तद्वत् , तथा रविकिरणः सूर्यकिरणे बोधितं विकासितं-विकासावस्थां प्राप्नुवदित्यथः, अतएव विकोशायमानं मुकुलावस्थां विमुञ्चत् यत् पद्म तद्वद् गम्भीरा विक्टा-सुन्दरा च नाभियाँसा तास्तथा। 'अणुब्भडपसत्थसुजायपीणकुच्छी' अनुगटप्रशहा जातपीनकुक्ष्यः अनुद्भट उद्भटरहितौ समो, प्रशस्तौ सुजातौ सुसंस्थिती पीनौ सुपुष्टौ कुक्षी-उदरोभपभागौ यासां तास्तथा 'संनयपासा' संनतपार्थाः = पुष्टत्वादधोनमत्पार्श्वभागाः, 'संगयपासा ' सङ्गतपार्धा:-सुमिलिपार्श्वभागाः, आरा · मुंदरपासा' सुन्दरपार्थाः = मनोहरपार्श्वभागाः, 'सुनायपासा ' सुजातपार्थाः सुसंस्थितपार्था, 'मियमाइयपीणरइयपासा' मितकिरण तरु गोहिय अकोनायतपउमगंभीरविगडनाभीओ) इनकी नाभि तरंगों से चक्र बने हुए ऐसे दक्षिणावर्तवाले गंगानदी के जलभ्रमभंवर के समान होती है। तथा सूर्य की किरणों के संपर्क से अपनी मुकुलिन अवस्था का परित्याग कर विकसित अवस्था को प्राप्त हुए पन के समान गंभीर होती है और विकट बड़ी सुन्दर होती है। (अणुभडपसत्थसुजायपीणकुच्छी ) इनके उदर के दोनों पार्श्वभाग अनुद्भटअनुल्वण-बराबर-एक से होते हैं । प्रशस्त-सुहावने होते हैं। सुजातअच्छे संस्थानवाले होते हैं । पीन-पुष्ट होते हैं । ( संनयपासा ) तथा पुष्ट होने के कारण इनके दोनों तरफ के वे पार्श्वभाग नीचे की ओर झुके हुए रहते हैं । ( संगयपासा ) वे दोनों उनके पार्श्वभाग परस्पर में संगत-मिले रहते हैं। अतएव वे ( सुंदरपासा ) बड़े सुन्दर होते हैं। तथा (सुजायपासा ) अच्छे संस्थान से युक्त कहे जाते हैं। (मियमा. भीरविगडनाभीओ" तेमनी नामि तरंगोथी १४ मने क्षियावत वाणा ગંગા નદીના જલબ્રમ–વમળ જેવી હોય છે, અને સૂર્યના કિરણોના સંપર્કથી પિતાની બીડાયેલી અવસ્થા છોડીને વિકસિત થયેલાં કમળના જેવી ગંભીર भने विकटा अत्यत मुंह२ सय छे. "अणुव्भडप सत्थसुजायपाणकुच्छी" તેમના ઉદરની બાજુના બને ભાગો (કુક્ષીઓ) એક સરખા હોય છે. प्रशस्त, पुष्ट भने सु ाय छे. “ संनयपासा" ते पन्ने पुक्षी पुष्ट हापाने राणे नीयनी पाणु असा २ छ. " संगयपासा, तेमनी ते मन्ने क्षी५२२५२मा सात- भणेसी डोय छ, तेथी ते "सुदरपासा" agी सु१२ खाय छे. तथा “ सुजायपासा" सुघटित राय छे. "मियमाइयपीणप्र. ६०
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