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सुदर्शिनी टीका अ0 ४ सू० १३ युगलिनीस्वरूपनिरूपणम् वेया, णंदणवणविवरचारिणीओ ओव्वअच्छराओ उत्तरकुरुमाणुसच्छराओ आच्छेर गयेच्छणिजाओ तिणिपलि ओवमाइं परमाउं पालइत्ता ताओ वि उवणनंति मरणधम्म अतित्ता कामाणं ॥ सू०१३॥
यीका-'निद्धपाणिलेहा ' स्निग्धपाणिरेखाः = सुस्पष्टहस्तरेखाः । ससिसरसंखचक्कवरसोत्थियविभत्तसुविरड्यपाणिलेहा ' शशि--सूर्य-शङ्ख-चक्रवर स्वस्तिकविभक्तसुरतिदपाणिरेखाः = चन्द्रसूर्यशङ्खचक्रदक्षिणावर्तस्वस्तिकलक्षणाः विभक्ताः सुस्पष्टाः रतिदाः-सुखदाः पाणिरेखाः हस्तरेखा यांसां तास्तथा । ' पीणुण्णयकक्ववस्थिप्पदेसपडिपुण्णगलकबोला' पीनोन्नतकक्षवस्तिप्रदेशमतिपूर्णगलकपोलाः = पीनावुन्नतौ च कक्षौ = बाहुमूलौ बस्तिः = नाभ्यधोभाग स्तथा प्रतिपूर्णी गलकपोलौ यासां तास्तथा ' चउरंगुलमुप्पमाणकंबुबर सरिसगीवा' चतुरंगुलसुप्रमाणकम्बुवरसदृशग्रीवाः = चतुरंगुलप्रमाणा कम्युवर
फिर वे कैसी होती हैं सो कहते हैं-'निद्धपाणिलेहा' इत्यादि।
टीकार्थः-(निद्धपाणिलेहा ) इनके दोनों हाथों की रेखाएं स्निग्धसुस्पष्ट होती हैं। (समिसरसंखचक्कवरसोत्थियविभत्तसुविरइयपाणिलेहा) उनके हाथों में शशि-चंद्र रवि, शंख, चक्र और दक्षिणावर्त स्वस्तिक, इन आकार की रेखाएँ होती हैं । और ये सब रेखाएँ सुस्पष्ट रहती हैं, सुखद होती हैं। (पीणुण्णयकक्खवत्थिप्पदेसपडि पुण्णगलकवोला) इनकी दोनों कक्षाएँ-बाहुमूल-पीन-पुष्ट और उन्नत होता है। वस्ती नाभि का अधोभाग भी ऐआ ही होती है । तथा गला और कपोल ये दोनों इनके प्रतिपूर्ण-भरे हुए रहते हैं । ( चउरंगुलसप्पमाणकंबूवर
ते युगतिर स्त्रीयानुं वधु वान ४२ छ-" निद्धपाणिलेहा" त्याहि.
Astथ :-"निद्वपाणिलेहा" तेमना मन्ने खायनी २ स्नि५-सुस्पष्ट डाय छे. " ससिसूरसंखचक्कारसेात्थियविभत्तसुविरइयपाणिलेहा" तेभना खायामा ચંદ્ર,સૂર્ય,શંખ,ચક,દક્ષિણાવર્ત સ્વસ્તિક આદિના આકારની રેખાઓ હોય છે. ते ५धी २४ामे सु२५०८ भने सुमह डाय छे. “ पीणुण्णयकक्खवस्थिप्पदेसपडिपुण्णगलकवोला" तेमनी मन्ने सो पुष्ट मने उन्नत डाय छे. बस्तिનાભિની નીચેને ભાગ પણ એ જ હોય છે, તથા તેમનું ગળું અને ગાલ પ્રતિपू स२ डाय छे. “ चउरंगुलसुप्पमाणकंबरसरिसगीवा " तेमनी श्रीवा
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