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प्रश्नव्याकरणसूत्र क्षेत्रवेदनाजनकत्वात् 'असाओ' आता असातवेदनीयः-कोत्पादकत्वात्
वाससहस्सेहि वर्षसहस्रैः = अनेकपल्योपमसागरोपमादिकालोरूपभोगेन 'मुच्चइ ' मुच्यते । तदेव व्यतिरेकमुखेनाह-नय अवेदइत्ता' नवाऽवेदयित्वाउपभोगं विना न 'योक्खोति ' मोक्षोऽस्ति । ' एवं ' उक्तरीत्या 'आहंसु' ऊचुः= कथितवन्त भूतपूर्यास्तीर्थङ्करगणधरादयः । तथा-तदनुसारेणैव 'नायकुलनंदगो' ज्ञातकुलनन्दनः---सिद्धार्थ कुलानन्दकरः ' महप्पा' महात्मा परमात्मरूपः 'जिगो' चतुर्गतिरूप संसारमें भ्रमण करवानेका कारण होनेसे यह दारूग है। (ककसो) दश प्रकार को क्षेत्रवेदना का जनक होने से यह फलविपाक कर्कश है। (असाओ) असातवेदनीयरूप होने से यह असात है-अर्थात् असाता वेदनीय कर्म के उदप से यह उत्पन्न होता है इसलिये असातावेदनीयकर्म के द्वारा उत्पाद्य होने के कारण यह स्वयं असातस्वरूप है। अथवा इस प्रकार के कर्म करने वाले जीव जो फलविपाक भोगते है। उस समय वे असातावेदनीय कर्म का बंध करते है,-कारण फलविपाक भोगते समय उनकी आत्मा में दुःख शोक-ताप आदि भाव होते हैं इन भावों से जीव असातावेदनीय कर्म का आस्रव करता है । इस अपेक्षा से असातावेदनीय कर्म का उत्पादक होने से यह फलविपाक असातरूप माना गया है । (वाससहस्सेहि) यह फलविपाक जीव पल्यो पमकालतक भोगने से (मुच्चइ) छूटता है। (नयअवेदहत्ता अस्थि हु मोक्लो त्ति) इस फलविपाक का उपभोग किये विना यह नहीं छूटता है। પડે છે, તેથી ચાર ગતિવાળા સંસારમાં ભ્રમણ કરાવનાર હોવાથી તે દારુણ છે. " ककसो" इस प्रा२नी क्षेत्र वहनाना नापाथी ते सविया - हीर छ. " असाओ" मसात वहनीय ३५ पाथी त मसात-सेटो है અસતાવેદનીય કર્મના ઉદયથી તે ઉત્પન્ન થાય છે, તેથી અસાતા વેદનીય કર્મ દ્વારા ઉત્પાદ્ય હેવાને કારણે તે પોતે અસાતસ્વરૂપ છે. અથવા આ પ્રકારનાં કમ કરનારા છે જે ફલવિપાક ભેગવે છે, તે ભેગવતી વખતે અસાતાવેદનીય કમને બંધ બાંધે છે, કારણ કે ફલવિપાક ભેગવતી વખતે તેમના આત્મામાં દુઃખ શોક તાપ આદિ ભાવ હોય છે, તે ભાવથી જીવ અસાતાવેદનીય કર્મને આસ્રવ કરે છે. આ અપેક્ષાએ અસાતવેદનીય કર્મને ઉત્પાદક
पाथी मा वि मसात३५ भान्या छ. “ वाममहासेहिं " २॥ ३३वि પપમ કાળ સુધી અચવા સાગરોપમ કાળ સુધી ભગવ્યા પછી જ જીવ
"मुच्चड " तेनाथी भुत थाय छे. 'नय अवेदइ ता अस्थि हु मोक्खो ति" भाविपान पला५ या विना ते भुत थ४ शत नथी. "एवं"
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