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सुदशिनी टीका ० ४ सू० ११ युगलिकस्वरूपनिरूपणम्
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तचित्तसमंत्र' अवस्थितविक चित्रश्नकाः - अवस्थितानि सम्यक्तया यथास्थानं जातानि सुविभक्तानि शोभना विभागेन स्थितानि चित्राणि शोभया विस्मयजनकानि श्मश्रूणि येषां ते तथा । 'उचचियमंसलपसत्य सद्दूलविउलहणुया ' उपचितमांसलमशस्ताशार्दूलविपुलहनुकाः = उपचितः पुष्टः अतएव मांसल : = मांसयुक्तः प्रशस्तः तथा शालस्येव विपुलट हनुः = ओष्ठाऽधोभागो येषां ते तथा 'ओसिलवाल विफलसंनिभाधरोडा ओयनिय शिलाप्रवालविम्बफलसनिभाधरोष्ठा = ओविय' इति विशिष्टपरिकर्मितं सुसंस्कृतं यच्छिलावा= विदुः तथा विफलं च ताभ्यां सन्निभः सदृशो रक्तोऽधरीष्ठो येषां ते तथा 'पंडुरससिसकल- विमलसंखगोखीर - फेणकुंददगरयमुणालिया - धवलदंतसेढी ' पाण्डुरश शिशकल विगलगोक्षीरफेन कुन्दद करजोमृणालिका धवलदन्ताश्रेणयः = तत्रपाण्डुरं=वेतं यत् शशिशकलं=चन्द्रखण्डं तथा विमलशङ्खः प्रतीतः गोक्षीरं = गोदुग्धं फेनः = नदी जलादिफेनः कुन्दं = श्वेतपुष्प विशेषः दकरजः = जलविन्दुः मृणालिका = इनकी दादी के जो बाल होते हैं वे अच्छी तरह से जहां जिन्हें उत्पन्न होना चाहिये यहां उत्पन्न होते हैं, अच्छी तरह विभागरूप से स्थित रहते हैं, और अपनी शोभा से विस्मयजनक होते हैं। तथा ( उबचियसत्यमचिहणुया) इनके होठों के नीचे का जो भाग होता है यह पुष्ट होता है, मांसल होता है, प्रशस्त-सुहावना होता है और सिंह की दादी के समान विपुल विस्तृत होता है। (ओयवियसिलप्पवालविचफलसंनिभघरोट्टा ) तथा इनके जो अधरोष्ट होते हैं वे अच्छी तरह परिकर्मित किये हुए मूंगे के समान और विम्बफल - कुंदरु के समान रक्त होते हैं ( पंडुरससिसकलविमल संखगो खीर फेण कुंददगारमुलियाघवलनसेडो ) तथा इनका जो दांतों की पंक्ति होती है वह शुभ्र चंद्रमा के खंड जैसी, निर्मल शंख जैसी, गाय के दूध जैसी,
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सुभितचित्तसमंसू તથા તેમની દાઢીના વાળ જ્યાં જેમને ઉગવુ· જોઈ એ ત્યાં જ ઉગેલા હોય છે, સારી રીતે વિભાજિત હોય છે, અને તેમની શાભા “ उत्रचियमंसल सद्दूलविउल हणुया અદ્ભુત હોય છે, તથા તેમના હાડની નીચેના ભાગ પુષ્ટ, માંસલ, શેભિતા, અને સિંહની દાઢીના જેવે विभुतविस्तृत होय . आयवियसिलवाल फिर से निभावरोट्ठा " तेमना છે. '. અધર ડોડ સારી રીતે તૈયાર કરેલ પરવાળા જેવા તથા બિમ્બફળ-કુદરા જેવાં साझ डे!य छे. पंडुरसद्धि-कल-विमल-संख - गोखार - फेन कुंदबगरयमुणालिया धवलदंतसेढी " तेभनी त यति शुभ्र चंद्र भांडे लेवी, निर्माण शंस लेवी ગાયના દૂધ જેવી, નદી જળ આદિનાં ફીણ જેવી, શ્વેત પુષ્પ જેવી, જળનાં
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