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सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० ११ युगलिकस्वरूपनिरूपणम्
पुनस्ते कीदृशाः ? इत्याह-'भुयगीसर' इत्यादि ।
मूलम्-भुयगीसर-विउल-भोग-आयाण-फलिह-उच्छृढदी. हबाहू-रत्ततलोवइय-मउय-मंसल-सुजाय-लक्खणपसत्थ-अच्छिदजालपाणी पीवर-सुजाय-कोमल-वरंगुली तंबतलिणसुइरुइल निद्धणखा निद्वपाणिलेहा चंदपाणिलेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्रपाणिलेहा दिसा सोवत्थियपाणिलेहा रवि ससि-संख-वरचक्कदिसा सोवत्थिय-विभत्त-सुरइय--पाणिलेहा वरमहिसवराहसीह-सहलरिसह नागवर-पडिपुण्ण-विउल-खंधा चउरंगुलप्पमाणकंबुवरसरिसगीवा अवटिय-सुविभत्त-चित्त समंसुउवचियमंसल-पसत्थ-सदल-विउल-हणुया ओयचिय सिलप्पवालबिंबफलसंनिभाऽधरोटा पंड्डुर-ससि-सकल-विमल संखगोखीर-फेणकुंददगरयमुणालिया घवल-दंतसेढी अखंड दंता अफुडियदंता अविरलदंता सुणिद्धदंता सुजायदंता एगदंतसेढिव अणेगदंता हुयवहानद्धंत-धोयतत्ततवणिज्जरततलतालुजाहा गरुलायय उज्जुतुंगनासा अवदालियपुंडरीय णयणा विकोसियधवलपत्तलच्छा आणामिय - चावरुइल किण्हन्भराइ-संठिय-संगयाययं-सुजाय-भूमगा--अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुस्सवणा पीयमंसलकवोलदेसभागा अविरुग्गय बालचंदसंठियमहानिलाडा उडुवइ-पडिपुण्ण-सोम्मवयणा छत्तागारुत्तमंगदेसा घणनिचिय सुबद्धलक्खणुण्णय-कूडागार निभपिडियम्ग-सिराहयवहनिद्धंत - धोयतत्ततवीणज्जरत्तकेसंत.
परिघा (भोगल) के समान गोलरहोते हैं। ऐसे ये भोगभूमिके मनुष्य भी कामभोगोंसे अतृप्त होकर ही मरण धर्मको प्राप्त करते हैं ।सू०१०॥ તે ભેગભૂમિનાં લેકે પણ કામ ભેગી અવત રહીને જ મૃત્યુ પામે છે સૂબા
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