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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० २० अदत्तादायिन कोदशं फलं लभन्ते ?
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चित्रादि विज्ञानं कला = धनुर्वेदादिका समयशास्त्रं = आर्हतादिकं, तैः परिवर्जिताः= रहिता: ' जहाजायपसुभूया' यथाजातपशुभूताः = यथा जाता = जन्मकाळे यादृशगुणविशिष्टास्तथैव स्थिता नतु शिक्षादिना विशेषतां प्राप्ताः एवंभूता ये पशवः= बलीवर्दादयस्तद्वद्भूताः = तत्सदृशाः 'अवियत्ता' अयं देशीशब्दः अमीतिका:= अमीतिकारकाः निच्च नीयकम्मोवजीविणो नित्यं नीचकर्मोपजीविनः = " ' सदा हिंसादित्युपजीविनः ' ळोयकुच्छणिज्जा ' लोककुत्सनीयाः = सर्वजनैर्निन्दनीयाः मोहमणोरहा ' मोघमनोरथाः = निष्फलमनोरथाः,
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उत्कीर्ण करने रूप विज्ञान से, (कला) धनुर्वेद आदि रूप कलाओं से एवं ( समय सत्य) अर्हत प्रणीत शास्त्रों के अभ्यास से, (परि वज्जिया) रहित होकर (जहा जायपसुभूया ) यथाजात पशु जैसे बने हुए ये ( अवियत्ता) किसी के भी साथ प्रीति नहीं करते हैं क्यों कि ये (निच्च नीयकम्मोवजी विणो ) नित्य ही नीच कर्मोपजीवी होते हैं। यथा जात पशुभूतका वाच्यार्थ इस प्रकार है- उत्पन्न होते समय पशु जिन गुणों से युक्त रहता है आगे भी वह बडा होने पर भी शिक्षादिक की प्राप्ति से अपनी तरक्की नहीं कर सकने के कारण वैसा ही बना रहता हैं, इसी तरह ये अदत्तग्राही व्यक्ति भी होते है हेय और उपादेय के ज्ञान से विकल जैसे ये जन्मते समय में थे वैसे ही ये बड़े होने पर भी रहते हैं, अतः इन्हे यथा जात पशुभूत कहा गया है । (लोय कुच्छणिज्जा ) समस्तजन इनकी निंदा किया करते हैं। ( मोहमणोरहा ) इनके जितने भी मनोरथ होते हैं वे सब मोघ - असफल ही रहते हैं ।
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धनुर्वेह आदि उसाध्योथी, मने" समयसत्य " अहुत प्रशीत शाखोना अभ्यासथी. " परिवज्जिया " रहित होवाने अश्शु " जहा जाय पसुभुया यथान्नत पशुना नेवा सागता तेथे “ अवियत्ता " अर्धनी पशु साथै प्रीति रामता नथी, अणु ऐ तेथे " निच्च नीयकम्मोवजीविणो " हमेशा नीथ भेपिवी होय छे. ' यथा जात पशुभूत 'नो वाग्यार्थ या प्रमाणे छेઉત્પન્ન થતી વખતે પશુ જે ગુણાથી યુક્ત હોય છે એ જ ગુણાથી યુક્ત માટુ થતાં પણ રહે છે તે માઢુ થાય તે પણ શિક્ષાદ્રિક ની પ્રાપ્તિ વડે પોતાની ઉન્નતિ કરી શકતું નથી. એ જ રીતે અદ્યાદાન લેનાર વ્યક્તિ પણ જન્મ સમયે હેય અને ઉપાદેયના જ્ઞાનથી જેટલી રહિત હાય છે એટલી જ મેાટી ઉમરે પણ તે જ્ઞાનથી રહિત રહે છે. તેથી તેને “ યથા छे" लोयकुच्छणिज्जा તેમના સઘળા મનોરથા અપૂર્ણ રહે છે.
સઘળા લોકો તેમની નિંદા કરે
निरास बहुला
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જાત
પશુભૂત ” કહેલ
છે,
मोहमणोहरा " ૐ ઈચ્છિત વસ્તુ ન
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