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सुदर्शिनी टीका अ०४ सू०४ ९ १, युगलिकस्वरूपनिरूपणम् ४५७ सुजातसर्वाङ्गसुन्दराङ्गाः = सुपुष्टसुन्दराऽवयवाः 'रत्तप्पलपत्तकैतकरचरणकोमलतला' रक्तोत्पल पत्रकान्तकरचरणकोमलतलाः = रक्तोत्पलस्य पत्रमिव कान्तानि= मुन्दराणि करचरणानां कोमलानि तलानि येषां ते तथा रक्तकमलदलतुल्य सुकोमलसुरक्त हस्तपादतलाः ' सुपइट्टियकुम्मचारुचलणा ' सुपतिष्ठितकूर्मचारुचरणाः = सुप्रतिष्ठितौ = शोभनाकृतिको कूर्मवन-उन्नतस्वेन कच्छपपीठवत् चारू-सुन्दरौ चरणौ येषां ते तथा, तथा 'अणुपुब्बसुसंहयंगुलिया' अनुपूर्वसुसंहतालिका अनुपूर्व अनुक्रमेण-गुरुलघुक्रमेण सुसंहताः सुमङ्गठिता अझुल्या हस्तपादाङ्गुलयो येषां ते तथा गुरुलघुन्यूनाधिकदोषरहितालिकाः 'उण्णयतणुतंबनिद्धनखा ' उन्नततनुताम्रस्निग्धनखाः = तत्र उन्नताः = मध्योन्नताः तनवः प्रतला स्ताम्राः ताम्रवर्णाः स्निग्धाः सुकोमलाः कान्ति युक्ताश्च नखा येषां ते तथा, 'संठियसुसिलिगुढगोफा' संस्थित मुश्लिष्टगूढगुल्फाः = संस्थितौ= सम्यक् संस्थानवन्तौ मुश्लिष्टौ-पुष्टत्वात् सुसंहतो अतएव गूढो अलक्षितौ गुल्फौ= घुटिके येषां ते तथा 'एणीकुरुविंदवत्तावट्टाणुपुष्वजंघा ' एणी कुरूविन्दवत्ता बडे सुन्दर होते हैं । ( सुजायसव्वंगसुंदरंगा ) इनके प्रत्येक शारीरिक अवयव सुन्दर एवं पुष्ट होते हैं । (रत्तुप्पलपत्तकंतकर चरणकोमलतला) इनके हाथ और पैरों के तलिये रक्तकमल के पत्ते के समान लाल और कोमल होते हैं। (सुपइट्ठियकुम्मचारु वरणा) इनके दोनों चरण शोभन आकृतिवाले एवं कूर्म की पीठ की तरह उन्नत होने से बड़े सुहावने होते हैं (:अणुपुश्वसुसंहयंगुलिया ) हाथ और पैरों की अंगुलिया इनकी गुरू लघु के क्रम से सुसंगठित रहती हैं, अर्थात् इनके हाथ पैरों की अंगुलियां गुरु, लघु-तथा न्यूनाधिक दोष से रहित होती हैं। ( उण्णयतणुतंयनिद्धनखा ) नख इन्हों के मध्य में उन्नत, पतले और ताम्रवर्ण के होते हैं । तथा कोमल और कान्ति सहित होते हैं। (संठियसुसिलिट्ठगूढगोंफा ) इनके दोनों घुटने मुसंस्थान वाले, पुष्ट पुष्ट डाय छे. " रतुप्पलपत्तकंतकरचरणकोमलतला" तेमनी येणी तया પગનાં તળિયાં લાલ કમલ પત્ર સમાન લાલ રંગનાં અને કેમળ હેાય છે. "सुपइद्रियकुम्मचारुचरणा" तेभाना माने ५॥ सु२ घाटपात, तथा आयमानी भी उन्नत हावाथी ! शामित राय छे. "अणुपुव्वसुसंहयंगुलिया" तेमना હાથપગની આંગળીઓ સુસંગઠિત હોય છે. એટલે કે ગુસ્તા લઘુતા આદિ દેથી २खित डाय छे, संप्रभा जाय “ उण्णयतणुतंबनिद्धनखा" तमना नम मध्यमा उन्नत, पाता, ताप, अम अने अन्तियुक्त डाय छे. “ संठिय सुसिलिट्ठगूढगोंफा " तेमनी मने धूट सभा, पुष्ट भने सडत तथा
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