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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
मनसोऽनिषेधः ११ । 'विग्गहो' विग्रहः विग्रहकारित्वात् १२, 'विधाओ' विघातःचारित्रविनाशरूपः १३, 'विभगो ' विभङ्गा-संयमादिगुणानां विशेषेण भञ्जकत्वात् १४, 'विन्भमो' विभ्रमः = अनुपादेयेष्वप्युपादेयत्वेन नानाविधभ्रान्तिजनकत्वात् १५, 'अहम्मो ' अधर्मः श्रुतचारित्रलक्षणधर्मप्रतिकूलत्वात् १६, ' असीलया ' अशीलता-चारित्र वर्जितत्वात् १७, 'गामधम्मतत्ती' ग्रामधर्मप्तिः प्रामधर्माः-शब्दादयः कामगुणास्तेषां तृप्तिः आसेवनम् १८, रत्ती' रतिः =अशुभरागः१९, रागचिन्ता-रागः-रागकारणत्वात् स्त्रीशृङ्गाररूपलाण्यादिः तस्य आवेग शरीर में जागृत होता है उस समय इन्द्रियां अथवा मन बेकाबू हो जाता है अतः इसका नाम अनिग्रह है ११। इसके पीछे ही भयंकरसे भयंकर विग्रह उत्पात खड़े होते हैं इसलिये इसका नाम विग्रह हैं १२॥ यह चारित्रका विघातक होता है । इसलिये इसका नाम विघात है१३ । संयम आदि गुणोंका यह विशेषरूपसे भंजक होता है इसलिये इसका नाम विभंग है १४। जो अनुपादेय पदार्थ होते हैं उनमे भी यह उपादेयरूपसे मानाप्रकार की भ्रान्ति का जनक होता है इसलिये इसका नाम विभ्रम है १५ । श्रुतचारित्र रूप धर्म से यह प्रतिकूल है इसलिये इसका नाम अधर्म है १६। इसमें चारित्र नहीं होता है इसलिये इसका नाम अशोलता है १७ । इसमें ग्रामधर्म जो शब्दादिक काम गुण हैं उनका सेवन होता है इसलिये इसका नाम ग्रामधर्म है १८। यह अशुभ रामरूप है इसलिये इसका नाम रति है १९ । इसमें स्त्रियों के श्रृंगार આવેગ જાગૃત થાય છે ત્યારે ઈન્દ્રિય તથા મન કાબૂમાં રહેતા નથી, તેથી तेनु नाम “अनिग्रह " छ '१२' तेने १२0 ४ सय ४२मा लय ४२ विड
त्पात पनि थाय छ, तेथी तेनु नाम “विग्रह” छ, '१७' ते यात्रिनु विधात पायी तेनु नाम “विघोत” छ, '१४ सयम पाहि शुषोनु More नाश ४२ना२' हापाथी तेनु नाम “ विभंग" छ, '१५' २ मतुपा. દેય પદાર્થો હોય છે તેમાં પણ ઉપાદેયરૂપે વિવિધ પ્રકારની બ્રાન્તિ “બ્રમ” નું
न पाथी तने “विभ्रम " ४ छ १६, श्रुतयारित्र३५ धनी १३६ हावाने धरणे तेने “ अधर्म" ४ छ '१७' तेनु सेवन ४२ना२मा यात्रि हातुं नथी, तेथी तेनु नाम “ अशीलता” छ, '८' तेभा आभयम रे Avale आम छे तेमनु सेवन थाय छे' तेथी तेनु नाम “ ग्रामधर्मतृप्ति " छ, “१८' छे अशुभ २॥२॥ ३५ लापाथी तेनुं नाम " रति ” छ '२०' तेमा સ્ત્રીઓને શ્રગારનું, તથા તેમનાં રૂપ લાવણ્ય આદિનું ચિન્તવન થાય છે, તેથી
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