________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३५०
प्रश्न याकरणसूत्रे असिना-खङ्गेन छियन्ते खडशः क्रियन्ते । तथा 'निबिसिया' निविषयाः= विषयात् देशानिष्कासिताः क्रियन्ते । केचित् 'छिण्णहत्थपाया य ' छिन्नहरतपादाश्च ‘पमुपति' प्रमुच्यन्ते, राजकिङ्करैर्हस्तपादं लिया ।ज्यन्त इत्यर्थः । केचित् ' जावजीवगा य कीरति ' यावज्जिवबन्धनाश्च कितन्ते जीवनपर्यन्तं कारागारे बध्वन्ते । 'केइ परदबहरणलद्धा' केचित् परद्रध्यहरणलुब्धाःपापिनः 'चारगालये' चारकालये कारागारे ' कारग्गलनियलजुयलरुद्धा' कारानलानिगडयुः ०६द्धाःकारार्गलया कागार्गलया निगडयुगछेन-लाह. शु बलाद्वयेन रुद्धा-नियन्त्रिताः भवन्ति । कथंभूतः १ इत्याह - 'हयारी' हृतसाराः = अपहृतद्रव्याः । पुनः कीदृशाः 'सयगविप्पमुका ' जनवि. प्रमुक्ताः = स्वकीयज्ञातिविरहिताः “भिजणनिरकिया " मित्रजननिराकृताः शूली पर चढाने के लिये ले जाते हैं । कितनेक चोर उन राजपुरुषोंद्वारा (असिणा छिज्जति ) तलवारों से काटे जाते हैं (निविसया) कितनेक देश से बाहर निकाल दिये जाते हैं। और (छिण्णहस्थपायाय) कितनेक हाथ पैरों को काट कर यों ही (पमुच्चंति ) छोड़ दिये जाते हैं। तथा कितनेक (जावजीव बंधणा य कीरति ) जीवन पर्यंत कारावास में ही रख दिये जाते हैं । ( केइ परदव्वहरणलुद्धा) तथा परद्रव्यहरण करने में लुब्धक बने हुए कितनेक चोर ( करग्गलनियलजुयल रुद्वा) कारागार की अर्गला के साथ लोह की जंजीरों से जकड़कर ( नरमालये ) कारागार मेंदीद कर दिये जाते हैं। (यसारा ) इनकाय समत रूप से
अपहर कर लिया जाता है। ( सयणविप्पमुका) इनके किसी भी स्वजन से इन्हें नहीं मिलने दिया जाता है । (मित्तजगनिरकिया ) इनके orय छे. ४८८॥ योर ते २० सेपछी २“ असिणा छिज्जति ” तपाथी ४५४ anय छ, “निविसया" देशमाथी isी ढपामा आवे छ, भने "छिण्ण हत्थर, २. य" साने थ41 पीनजाने "पमुच्चंति" छोडी भूवामां आवे छे. तथा “ जावज्जीवबंधणाय कीरति टने ७वे त्या सुधी रागडम पूरी रामे छे. “केइ परद-वहरणलुद्धा" (प२धननु अपहरण ४२वानी सालसा वापसा योगने “करग्गलनियलजुयलरुद्ध." राडना मांगनीया साथे वोढानी. सांगोथी मांधीन " चरगालये" (२।भारभा रावामां आवे छे. " हयसारा" तेभन सघणु द्रव्य ४४ ४२वामां मावे . “ सयण विप्पमुक्का" तेभाना आपा स्वराननी भुसात तेमनी साथे थवा देता नथी, “मित्तजणनिरकिया " तमना भित्री ५९५
For Private And Personal Use Only