________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
३१०
व्याकरणसूत्रे
--
चाणि ' निक्षिप्तानि = स्थापितानि 'घणघण्णदव्वजायानि ' धनधान्यद्रव्यजातानि = धनधान्यसुवर्णरजतादीनि हरन्ति ' के इत्याह-ये ' परदव्याहि ' परद्रव्यैः 'अविश्या ' अविरताः==अनिवृत्ताः = ' निम्त्रिणमई' निर्घृणमतयः करुणारहिताः 'तदेव' तथैव पूर्वोक्तप्रकारेण 'केई' केऽपि 'अदिण्णादाणं' अदत्तादानं स्वाम्यादिभिरवितीर्णे धनं गवेषमाणाः = अन्वेषमाणाः कालाकाले पु= काठेपु=सकललोकव्यव हारोचितकालेषु दिनादिलक्षणेषु तथा अकालेषु अनुचितकालेषु अर्धरात्रादिलक्षणेषु च सञ्चरन्तः=भ्रमन्तोऽदत्तग्राहिणः, 'चितगपज्जळियसरसदरदडूकड्डियकलेवरे ' चितकप्रज्वलित सरसदरदग्धकृष्टकले व रे = चितकेषु = चितासु, : कीदृशेषु ? प्रज्वलि
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हुई ( घणघण्णदव्वजायाणि) धन, धान्य, सुवर्ण रजत आदि संपत्ति को ( हरंति ) हर लिया करते हैं। (परदव्बाहि अविरया ) क्योंकि ये लोग परके द्रव्य को चुराने रूप कृत्य से विरक्त नहीं होते हैं- “ दूसरों का द्रव्य विना पूछे नहीं लूंगा " इस प्रकार का नियम इन्हें नहीं होता है । (निग्विणमई ) ये सर्वथा दयाभाव से रहित मति वाले होते हैं। ( तहेब केइ ) इसी तरह कितनेक व्यक्ति ( अदिष्णादाण ) स्वामी आदि द्वारा वितोर्ण नहीं किये हुए धन धन्यादि की ( गवेसमाणा ) गवेषणा करते हुए ( कालाकाले ) समस्त लोक व्यवहार के उचित दिन आदि रूपकाल में तथा अर्धरात्रि आदि रूप अकाल - अनुवित काल में ( संचरंता ) इधर उधर घूमते हुए श्मशान शून्यगृह आदि में भटकते रहते हैं, यह सम्बन्ध यहां जोड़ लेना चाहिये । वह श्मशान आदि कैसे हैं सो वर्णन करते हैं-जहां (चितगपज्जलिय ) प्रज्वलित चिताओं में
"
जायाणि " धन, धान्य, सोनु, ३५, आहि संपत्तिने " हरति " याशु तेखे। हरी वे छे. " परदव्वाहि अविरया " अर े ते बोझे परधनने योश्वाना કૃત્યથી વિરકત ડાતા નથી, “ બીજાનુ દ્રવ્ય તેને પૂછ્યા વિના નહીં લ` '' मेव। तेभने नियम होतो नथी. ' निग्विणमई " तेथे सहा घ्यालावधी रडित भतिवाजा होय छे. “ तहेव केइ " यो ४ प्रमाणे उटवाउ बोओ " अदिण्णादाण " भादिङ आदि द्वारा अर्पण न वामां आवे धन धान्याहिनी " गवेसमाणा शोध रतां “ कलाका અધા લોકો સાથે વ્યવહાર માટેના દિવસ આદિ योग्य सभय अथवा मध्य रात्रि याहि अमले - अयोग्य समये " संचरता " આમ તેમ શ્મશાન, શૂન્યગૃહ-ખાલીઘર-આદિમાં ભટકયા કરે છે. તે શ્મશાન આદિ देवां होय छे, तेनुं वर्जुन रे छे - "चितगपज्ज लिय" सणगती चिताओ मां "सरस"
"
For Private And Personal Use Only