________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदर्शिनी टीका अ. ३ सू० ११ तस्करकार्यनिरूपणम् तेषु-प्रदीप्तेषु यानि सरसानि रुधिरमांसादिसहितानि अतएव दग्धानि ईषद्भस्मीभूतानि तानि कृष्टानि-श्वशृगालादिभिश्चितातो निष्काशितानि कलेवराणि= मृतकशरीराणि यत्र तत्तथा तत्र श्मशाते । पुनः कीदशे-' रुहिरलित्तवयणअक्खयखादियपीयडाइणिभमंतभयंकरे ' रुधिरलिप्तवदनाऽजतखादितपीतडाकिनी भ्रमद् भयङ्करे-तत्र रुधिरेण लिप्तानि वदनानि = मुखानि तथा अक्षतानि समग्राणि खादितानि मृतकानां शरीराणि तथा पीतानि रुधिराणि याभिस्तास्तथा भ्रमन्त्यश्च या डाकिन्यस्ताभिर्भयङ्करे, 'जंबुयखिक्खियते' जम्बुकानां 'खिखि' इति शब्दयुक्ते तथा 'घूयकयघोरसद्दे ' घूककृत घोरशब्दे-धूकैः-उलूकैः कृतः घोरः=भयङ्करः शब्दस्तेन युक्ते तथा 'वेयालुट्ठियविसुद्धकहकहेंतपहसियबीहणगनिरभिराभे 'वे. तालोत्थितविशुद्धकहकहायमानप्रहसितभीषणकनिरभिरामे = वेतालेभ्यः = विकृत पिशाचेभ्यः उत्थितं समुत्पन्नं विशुद्धम् अन्यशब्दाऽमिश्रितं यत् कहाहायमानं (सरस) रस-रुधिर आदिसे लिप्स मुर्दे (दरदड) पूरे नहीं जल सकने के कारण (कड़ियकलेवरे) कुत्ते एवं श्रृगाल आदि द्वारा चिताओंसे बाहिर निकाल लिये जाते हैं (रुहिर लित्तवयण ) जिनके मुख रुधिर से लिप्त हो रहे हैं, तथा (अक्खयखादियपीय) जिन्होंने समग्ररूपसे मृतक कलेवरोंको खाया है और उनकाखून पी लिया है ऐसी (डाइणीभमंतभयंकरे) घूमती हुई डाकिनियोंसे जो भयंकर बने हुए हैं (जंबुयखिक्खियंते) तथा जो गीदडों के 'खि-खि ' शब्दोंसे युक्त हो रहे हैं (घूयकयघोरसद्दे) उल्लू जहां घोर शब्द कर रहे हैं, तथा जहां (वेयालुट्ठिय) वेताल विकृत बनकर जोर से कह कहाय मार कर हँसा करते हैं । (विसुद्धकह कहेंत पहसिय) उनका यह हँसना जहाँ अन्य और शब्दों से मिश्रित नहीं हो रहा है-केवल " कह कह " ऐसी ही ध्वनि जहां उनके मुख से निकल रही है, इस२स-रुधिर भाटिया ५२॥येai भु४i, " दरदड्ढ ” २! vil 3 न पाथी "कड्ढियकलेवरे" तसं. शियाण मा यितामामाथी २७।२ मेथी दाय छ. " रुहिरलित्तवयण अक्खयखादियपीयडाइणीभमंतभयंकरे " " रहिरलित्तवयण" જેમનાં મુખ લેહીથી ખરકાયેલાં છે તથા જેમણે સંપૂર્ણ રીતે મૃતશરીર નું मक्ष यु छ भने तमनु सोही पाधु छ मेवी " डाइणीभमंतभयंकरे" त्यां समती थी २ सय ४२ सात, “ जबुयखिक्खिय ते " तथा २ शियागान! "भि-मि" शोथी युत छ, “घूयकयघोरसदे" धु43 rii लय ४२ Aण्। ४३ छ, तथा न्यi " वेथालुट्टिय" वेतात मनी र शारथी म. पाट &सी २ छ, “ विसुद्धकहकहेंत पहसिय " तेभनु ते २५ न्यi elan કોઈ શબ્દ સાથે મિશ્રિત થતું નથી-કેવળ “કહ કહ એ ધ્વનિજ તેમનાં
For Private And Personal Use Only