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सुदर्शिमी टीका अ०३ सू० १२ तस्करस्वरूपनिरूपणम्
टीका-'अयसकरा' अयशस्करा! अकीर्तिमन्तः भयङ्कराः ' तकरा' तस्कराः अदत्तग्राहिणः चौरा इत्यर्थः, 'अज्ज' अध=अस्मिन् दिवसे 'कस्स' कस्य धनिनः इति एवं विधं यन्मनसि चिन्तितं तत् ‘दव् ' द्रव्यं धनं हरामः= चोरयाम इति एवं प्रकारं 'गुज्झं ' गुह्य-गुप्तं ' समामंतणं' समामन्त्रण विचारणां 'करेंति' कुर्वन्ति । तथा ' बहुयस्सजणस्स' बहुकस्य जनस्थ ‘कज्झकरणेसु' कार्यकारणेसु-कर्मानुष्ठानेषु 'विग्घकरा' विघ्नकरा: विघ्नोत्पादकाः ‘मत्तप्पमत्तपसुत्तवीसत्यछिदघाई' मत्तममत्तप्रसुप्तविश्वस्तछिद्रघातिनः-तत्र मद्यपानादिना. मत्तान् प्रमत्तान् प्रकर्षण मत्तान् प्रसुप्तान विश्वस्तांश्च छिद्रेण-छिद्रं प्राप्य घ्नन्ति
फिर वे कैसे होते हैं सो कहते हैं-' अयसकरा' इत्यादि।
टीकार्थ-( अयस करा ) इनकी दुनिया में अकीति फैल जाती है ये सब जगह बुराई से विख्यात हो जाते हैं, ( भयंकरा) इनके नाम श्रवण से भी लोगों के हृदयों में भय का संचार हो जाता है। इस तरह के ये (तकरा ) अदत्तग्राही-चोर (अज्ज कस्स दव्वं हरामो त्ति) "आज किस धनी का मन धारा द्रव्य हरण करना चाहिये" इस प्रकार की (गुज्झं ) गुप्त ( समामंतणं ) विचारणा ( करेंति ) किया करते हैं। तथा ( बहुयस्स जणस्स ) अनेक मनुष्यों के (कज्जकरणेसु) कार्यों में ये (विग्धकरा ) विघ्नोत्पादक हुआ करते हैं । ( मत्त-प्पमत्त. पसुत्त वीसत्यछिद्दघाई ) (मत्सप्पमत्त ) मद्यपानादिक से मत्त तथा प्रमत्त बने हुए व्यक्तियों को ( पसुत्त) सोये हुए मनुष्यों को, एवं ( वीसत्य ) अपने ऊपर विश्वास करने वाले प्राणियों को ये (छिद्दघाई )
तेसा ठेवा खाय ते नु वधु वर्णन. ४२ छ-" अयसकरा" ईत्यादि.
Ni-'अयसकरा" भी नियामा तेमनी २५५४ीति इसाय छे. तो दुष्कृत्याथी ४२४ स्थणे. ५४य छ, "भय करा" तभनु नाम समान ५५ सोना Gिawi मय पे थाय छे. मे ते “ तकरा” या “ अज्जकस्स दव्वं हरामो त्ति" " साने या पनि नुं धन रीसेस " मे मी. २नी “गुज्झं" शुभ " समामंतणं " विया२॥ " करेंति" छे. तथा "बहुयस्स जणस्स" अने माणसाना "कज्जकरणेसु" मा ते। विग्धकरा" विना या ४२ छे. “मत्त-प्पमत्त-पसुत्तवीमत्थछिद्दघाई " " मत्तपमत्त" ॥३
माहिपान भत्त तथा प्रमत्त मनेसा सामने “ पसुत्त" autu सोने, भने “वोसस्थ " पोताना ५२ विश्वास भूना२ सीने तो “ छिद्दधाई"
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