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प्रश्नव्याकरणसूत्रे षकाः परधनचौर्येण तुष्यन्ति येते तथा राजपुरुषैः 'गहियाय' गृहीताश्च ये नरगणाः चौरजनसमूहाः पूर्व कोट्टयालादिभिः प्राप्तदण्डाः 'पुगरवि ते ' पुनरपि ते ' कम्मदुब्बियड़ा' कर्मदुर्विदग्धाः अदत्तादानादिकर्भजनितकटुकफलज्ञानरहिताः चौर्यकर्माऽपराधेन देखि रायकिंकराणं ' तेषां प्रसिद्धानां निर्दयानां राजकिंकराणां राजपुरुषाणामधे 'उगीया' उपनीता= समीपं प्रापिताः कथं भूतानां राजकिंकराणामित्याह — वधसत्वगपाढयाणं ' वधशास्त्रकपाठकानां अधवन्धमारणघातनमात्रशिक्षाशिक्षितानां 'विलउलीकारगाणं' विलउली हीनदीनादिवचनै धौरादीनां निर्णयः देशी शब्दोऽयं, तत् कारकाणां 'लंचसयगेण्हयाणं ' लञ्चशतदुःखी होते रहते हैं । ( धगतोसणा ) यदि इन्हें संतोष प्राप्त होता है तो वह एक परके धनके अपहरण करनेसे ही होता है। परन्तु यह संतोष इनका स्थायी नहीं रहता है कारण जय (जेनरगणा ) ये अदत्तग्राही चौर लोक ( गहिया य ) राजपुरुषों द्वारा गृहीत पकड़ लिये जाते हैं, तब ( पुणरवि ते ) फिर भी वे विविध प्रकार के दंडों से इन्हें विशेष दुःख भोगना पड़ता है । तथा ( कम्मदुब्बियडा ) अदत्तादानादि कर्मजनित कटुक फल के ज्ञान से रहित बने हुए चौर्यकर्मरूप अपराधके कारण (तेसिं ) उन (रायकिंकरागं ) निर्दय राजपुरुषों के आगे जब (उवणीया ) ले जाये जाते हैं तब वे इन्हें प्राणदंड की आज्ञा देते हैं, तथा और भी इनके साथ क्या २ व्यवहार करते हैं यह बात सूत्रकार स्पष्ट नीचेके अवतरणों द्वारा करते हैं-राजपुरुष कैसे होते हैं ? पहले यह बात सूत्रकार कहते हैं- वधसत्यगपाढयाणं) वध, बंध, मारण, घातन, तृष्णाने ४२ तेवो रातदिन भी थय! ४२ छ. "धण तोसणा"तेने ५२५નનું અપહરણ કરવા સિવાય બીજા કોઈ કાર્યથી સંતોષ થતો નથી, પણ तेनात सतोष स्थायी डात नथी र यारे "ते नरगणा" ते सहतथाडी योरे। "गहिमाय" २०४ पुरुषो १२१ ५४15 लय छे त्यारे “ पुणरवि ते" शयी ५७५ तेभने मने प्रा२नी शिक्षा द्वारा धारे हो सोगOn ५3 छ, तथा “कम्म दुब्वियट्ठी” महत्ताहान माह मना ४४ परिणाम ज्ञानथी अज्ञानथी सेवा त योरोने, योशन शुनाने २ " तेसिं" ते "रायकिंकराणं" निय. २०० पुरुषो पासे न्यारे " उवणीया" वामां आवे छ ત્યારે તેમને મૃત્યુદંડની સજા થાય છે, તથા તેમની સાથે બીજા પણ કે વર્તાવ રાખવામાં આવે છે, તે વાતને સૂત્રકાર નીચેનાં, વાક્યો દ્વારા સ્પષ્ટ કરે છે-પહેલાં તે રાજપુરુષે કેવા હોય છે, તે વાત સૂત્રકાર બતાવે છે.
" वधसत्थगपाढयाणं " १५, मध, भा२५], घातन, माहि विधामाना
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