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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
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भेदग्रहणाय नानाविध मिथ्याभाषिणं, ' परलोक परम्हाणं' परलोक पराङ्मुखानां= परलोकभयरहितानामित्यर्थः, 'निरयगहगामियाणं नरकगतिगामिकानामेवंभूतानां राजपुरुषाणां पुरत उपनीताः ' तेहि य' तैश्व राजपुरुपै: 'आणत्तजीवदंडा ' आज्ञप्त जीवदण्डाः = आज्ञप्तः = आज्ञापितः जीवदण्डः शूलारोपणादिकः येभ्यस्ते तथा आमृत्युदण्डा इत्यर्थः तथा ' तुरियं उग्वाडिया पुरवरेहिं सिंघाडगतियचकच चरमहापहप शृंगाटकत्रिकचतुष्कचत्वरमहापथपथेषु = तत्र - शृङ्गाटकः = त्रिको मार्गः त्रिकः यत्र मार्गत्रयसम्मेलनं भवति, चतुष्कः = चतुर्मार्गस्थानं चत्वरः= गाणं) चौरादिकों का भेद लेने के लिये अनेक प्रकार की सैकड़ों झूठीर बातें बनाने में बड़े चतुर होते हैं, (परलोकपरम्मुहानं ) परलोकका भय इन्हें बिलकुल नहीं होता है। जो मनमें आता है वही अच्छा मानकर करते रहते हैं । (निरयगहगामियाणं ) इसी कारण मरने पर ये नरकगति में जाते हैं । अब ये राजपुरुष इन्हें क्या २ दंड देते हैं ? सो सूत्र - कार प्रदर्शित करते हैं ( तेहिं य) ये राजपुरुष ( आणत्तजीयदंडा ) इन चोरों को शूलारोपण आदि मृत्युदंड देते हैं । ( पुरवरेहिं ) नगर के (सिंघाडगतियच उक्कचचरमहा हपहेसु) शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ एवं पथ इन सब मार्गों में ( तुरियं उग्वाडिया ) शीघ्र उन्हें दिखा २ कर यह घोषित करते हैं कि “ देखो भाईयों ! ये महाचोर हैं और आज ही इनको मृत्युदंड दिया जायगा। सिंघाडे जैसा तिकानों जो मार्ग होता है उसका नाम श्रृंगाटक, जहां तीन मार्गो का संमेलन है उसका नाम त्रिक, जिस रास्ते में चार रास्ता आकर मिलते हैं उस का
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ચાર આદિના ભેદ જાણવાને માટે અનેક પ્રકારની સે'કડા જુઠી વાતા મનાવી अढवामां ते निपुणु होय छे, “ परलोकपरम्मुहाणं " तेमने परसोनो २ मिसङ्कुल होतो नथी, तेमने मनमां आवे ते ४ सारु' भानीने रे छे. " निर. इगामियाणं ” તે કારણે મરીને તેએ નરકગતિમાં જાય પુરુષો તેમને કેવી કેવી સજા કરે છે, તે સૂત્રકાર ખતાવે છે ते हि य"
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ते रान्पुरुषो “ आणत्तजीयदंडा " ते योशेने शूझारोपणु आदि मृत्यु: हे पुरवरेह सिंघाडगतियचउक्कचच्चरमहा पपहे सु નગરના शृंगाटक, अतुष्ङ, यत्वर, महापथ भने पथ से गधा भार्गो पर “ तुरियं उम्घाडिया ” तेभने जडपथी मतावीने येवु लडेर ४२ छे “ लायो ! वो, આ મહાન ચાર છે, અને આજે જ તેને મૃત્યુઇડ આપવાના છે” શિંગોડા જેવા ત્રિકોણાકાર માગને શૃંગાટક કહે છે, જ્યાં ત્રણ રસ્તા મળે તે ત્રિક, જ્યાં ચાર રસ્તા મળે તે ચતુષ્ટ, જ્યાં અનેક માર્ગો મળે તેને ચત્વર કહે
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